बुधवार, 26 जनवरी 2011

छिलकी क्यों ?

मैंने अपने ब्लाग का नाम छिलकी रखा है।  इस नाम को रखना मेरे लिए हमेशा अपनी माँ को साथ रखने जैसा है। जब मैं बहुत छोटी थी उसी समय मेरी माँ एक मानसिक रोग सिजोफ्रिनीया से ग्रसित हो गईं ।आज  उनको अपने मानसिक रोग से संघर्ष करते हुए  पैंतीस वर्ष से भी अधिक बीत चुके है, और अभी भी उनकी इस बीमारी से जंग जारी है....
   इस बीमारी में मेरी माँ इस दुनिया तथा दुनिया में रहने वाले लोगों को लेकर तरह-तरह की दृश्यात्मक कल्पनाएं( कल्पना के साथ सचमुच के दृश्य देखने का आभास होना )  करती है। ऐसी ही एक कल्पना वो अपने बच्चों यानि हम सब भाई-बहनों के बारे में भी करतीं थी।  वे जब भी अंडे के छिलकों को पडे देखती तो वह हमसे   कहतीं कि देखो इनमें से अभी छिलके बच्चे निकलेगे। वापिस पूछने पर कि क्या हम भी छिलके बच्चे है तो वह उत्तर देती कि हाँ, मेरे बच्चे भी छिलके बच्चे हैं।  क्योंकि मैं लडकी हूँ इसलिए मैं उनकी छिलकी बच्ची हुई।

9 टिप्‍पणियां:

  1. वीरेन्द्र यादव30 जनवरी 2011 को 5:57 pm बजे

    अनिता जी, अभी आपकी टिप्पणी स्त्री विम्रर्श पर पढ़ी। आपने उचित ही सवाल उठाए हैं।क्या आपने मेरा लेख वसुधा 86 में "मर्द सत्ता की घेरेबंदी और स्त्री विमर्श" पढ़ा है, मैने कुछ सवाल स मुद्दे पर रखे हैं आपकी प्रतिक्रिया जानना चाहूंगा.
    वीरेनद्र यादव

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  2. माँ के दिए नाम से बढ़कर कुछ नहीं ...माँ की बीमारी जानकारी दुःख हुआ ..मेरी माँ भी पिछले ७ साल से कैंसर से झूझती आ रही है ..सच देखकर दुःख तो होता है लेकिन उनके संघर्ष को देखकर जीने की एक नयी दिशा एक उर्जा मिलती है ..आप माँ का नाम रोशन करें यही प्रार्थना है ...नवरात्रि की शुभकामनाओं सहित सादर

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  3. बेहद प्रभाव साली ..


    आप मेरे भी ब्लॉग का अनुसरण करे

    आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में

    तुम मुझ पर ऐतबार करो ।

    .

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  4. छिलकी के आगाज़ के लिए हार्दिक शुभ कामना। सातत्य रखिएगा।
    माताजी को सादर नमन।

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