कहानियां

पथभ्रष्ट



(मेरी यह कहानी 'नया पथ' के अक्टूबर-
दिसम्बर 2011 अंक में प्रकाशित हुई है)
पीपल के पेड पर बैठी मिट्ठी मैना ने लंबी जुम्हाई ली और अपने मिट्ठू तोते को जोर से डाँटते  हुए कहा- अरे मिट्ठू मुझे ये तेरी पुराणकालीन बैसिर पैर की कहानियाँ नही सुननी. मुझे तो कोई आजकल की कहानी सुनाओ। देख जमाना कहाँ से कहाँ पहुँच गया और तू निठल्ला अभी तक पुरानी बतकहिया सुनाकर मुझे रात दिन पकाता रहता है। अब भी अगर तेरा यही हाल रहा तो मुझे कोई दूसरी डाल ढूंढनी पडे़गी। मिट्ठू तोता मिट्ठी मैना की बात सुनकर घबरा गया और मन ही मन सोचने लगा कि अगर यह मिट्ठी मुझे छोडकर कोई दूसरी डाल चुन लेगी तो मेरा क्या होगा? वैसे भी अभी हम दोनों लिव-इन रिलेशनशिप में है इसलिए इसके चांस ज्यादा है। शादी होती तो ऐसी बात कहने की इसकी हिम्मत भी नही होती। मैं अभी की अभी इसकी टांगे तोड देता। मिट्ठू अभी मिट्ठी को छोडने के लिए तैयार नही था, शायद उसे मिट्ठी से प्यार हो गया था। उसे लगता था मिट्ठी चाहे जितनी अक्खड़ हो, लडाकी हो पर है तो दिल की बहुत ही अच्छी। मेरी सब उल्टी-सीधी, झूठी-सच्ची, कपोल-कल्पित कहानियां-तडियां रात-दिन चुपचाप सुनती रहती है । इसलिए मैं इसे छोडने की सोच भी नही सकता । मिट्ठू ने तुरंत बात संभालते हुए प्यार भरे स्वर में मिट्ठी से अनुनय-विनय करते हुए कहा देख मेरी प्यारी मिट्ठी, मेरी जान अगर तुझे आज के जमाने की कहानी सुननी है ना, तो तुझे कुछ दिनों का सब्र रखना पडे़गा। उस तरह की कहानी के लिए मुझे बहुत मेहनत करनी पडेगी।संभव है तेरी मनमुताबिक कहानी ढूंढने के लिये मुझे साईबर कैफे में घंटो बैठना पडे। इसके लिए चोरी-छिपे अपनी और दूसरों की फेसबुक-टिविटर खंगालनी पड सकती है। गूगल पर भी सर्च मारुंगा और तब भी काम नही चला तो कुछ एनजीओ-कारपेट-सामाजिक-राजनैतिक संस्थाएं विजिट करुंगा। क्या पता मुझे इस काम के लिए उड़कर बहुत दूर दूसरे देश जाना पडे़। बोल मिट्ठी कुछ दिन सब्र करके मेरा इंतजार करने के लिए तैयार है? मिट्ठी मैना ने मिट्ठू तोते की बातों पर कुछ पल गंभीरता से सोचा और फिर कहा ठीक है- ठीक है मिट्ठू, मैं तैयार हूँ पर शर्त यही है कि चाहे तू दो-चार दिन भले ज्यादा लगा लेना पर कहानी एकदम बढिया और टनाटन ही ढूंढकर लाना। मेरा भी वादा है कि मैं तुझे इसी डाल पर तेरे वापिस आने के इंतजार में बैठी मिलूंगी।

तो भईया मिट्ठू जंगल-जंगल पार करता हुआ, पहाड़- नदी- नाले- तालाब- समुद्र- झीले लांघता हुआ एक ऐसी जगह जा पहुँचा जहाँ दूर-दूर तक लोग ही लोग दिखाई पड रहे थे । किसिम किसिम के लोग। काले-सफेद-लाल-भूरे। किसम-किसम के कपडे पहने। उनके सिरों पर किसम-किसम की टोपियां फब रही थी । हर रंग की टोपी अपनी खास पहचान और रंगत लिए थी। लाल, संतरी ,नीली, सफेद, हरी, गुलाबी, पीली और भी ऐसे-ऐसे रंग की जो कि उसकी कल्पना से भी बाहर थे। एक-एक रंग की टोपी के साथ उसी-उसी रंग की टोपियों में थोडी-थोडी भीड खडी थी। भीड अपने रंग की बडी टोपी पहनने वाले नेता की तरफ कुछ आदेश या इशारे का इंतजार कर रही थी। इन रंग-बिरंगी टोपी वाली भीड के पैरों तले हर तरफ नीले, लाल, पीले, हरे कागज ही कागज बिखरे पडे थे। चारों तरफ बडे-बडे पोस्टर, बैनर, होर्डिग लगे थे। तभी अचानक भीड में एक कोने की ओर से जोर-जोर से ढोल-ढपाडे बजने लगे। सारे लोग एक ताल-लय में कभी हाथ, तो कभी पैर उठाकर उछल-कूद जैसा नृत्य करने लगे। नाचते- नाचते किसी की तोंद हिल रही थी तो किसी की कमर। मिट्ठू पेड पर बैठा हैरत से यह सब देख रहा था। उसे कुछ समझ में नही आ रहा था, उसे बडा अजीब लग रहा था। यह मैं कहाँ पहुंच गया? यह कौन सा देश है ? क्या मैं किसी अंजान ग्रह पर तो नहीं पहुँच गया है ? यह कौन सी दुनिया है जिसकी पहचान विभिन्न रंगों वाली टोपियों से है ? उसने आश्चर्यचकित होकर जिज्ञासावश पेड पर बैठे अपनी ही तरह के एक अन्य तोते से पूछा- भाई यह क्या हो रहा है ? मैं कहां आ गया हूँ? यहां क्या हो रहा है? इतने सारे लोग इकट्ठे होकर क्या कर रहे है? उसके ठेर सारे सवाल एक साथ सुन दूसरे तोते ने उसे हैरानी से देखते हुए कहा- लगता है तुम यहां नये आए हो ? बातों से तो तुम्हारा एक्सेंट किसी अमीर पश्चिमी देश का लग रहा है। पप्पू की बात पर मिट्ठू ने हां में सिर हिला दिया। मिट्ठू के सिर हिलाते ही पप्पू ने कहा- यह भारत है और मेरा नाम भाई नही पप्पू है। हमारे यहाँ आजकल नई सरकार बनने की रोमांचक प्रक्रिया चल रही है। यहाँ हर पाँच साल बाद ऐसा ही दृश्य होता है। यह रंग-बिरंगी टोपी वाली भीड इसे प्रजातंत्र का जश्न कहती है। यहाँ पंन्द्रह दिन पहले चुनाव हुए है और आज से चुनाव के नतीजे घोषित होने शुरु हो रहे है। अलग-अलग रंग की टोपी वाले लोग अपने-अपने नेताओँ के साथ चुनाव परिणाम जानने के लिए खडे है । पप्पू की बात पूरी भी नही हुई थी कि तभी फिर जोर से कुछ घोषणा हुई और अपने जीतने के घोषणा सुनते ही एक रंग की टोपी वालों की ओर से जोर-जोर से ढोल-ढपाडे बजने की आवाज आने लगी। जीतने वाली टोपी के लोग एक-दूसरे को गुलाल लगाने लगे। बम-पटाके-फूलझडियां- अनार और तरह-तरह की आतिशबाजी जलाकर अपनी खुशी प्रकट करने लगे। उन्ही में से कुछ लोग खुशी के मारे अपनी बन्दूक से आसमान में ताबडतोड गोलियां चलाने लगे। अब विजेता टोपी वालों की भीड ने अपने बीच में खडे उसी रंग की सुनहरी किनारी लगी टोपी पहने अपने नेता को कंधों पर उठा लिया। तभी तीन-चार मोटे-मोटे भारी-भरकम शरीर वाले लोग जिनकी जेबों में तरह-तरह के रंग की टोपियां झांक रही थी, गले में सोने की मोटी-मोटी चैने लटकाएं, उंगलियों में मोटी-मोटी हीरे-पन्ने-मोती जडी सोने-चांदी की अंगूठियां पहनें, बाकी भीड को एक तरफ धकियाते हुए, अपने हाथों में एक बहुत बडी व तगडी नोटों से जडी हुई आदमकद फूलमाला लिए आए और उसे, जीतने वाले नेता को पहनाकर खुद भी उस माला के अंदर विजेता घोषित नेता से चिपक कर खडे हो गए। पप्पू में मिट्ठू को बताया कि एक सफेद कपडे वाले ने दूसरे सफेद कपडे वाले को हरा दिया है। अब जीतने वाले लोग नाच-गाकर जश्न मना रहे है।

मिट्ठू यह सब देखकर बहुत विस्मित हो रहा था । वह मन ही मन सोच रहा था ओह! भारत कितना रंग-बिरंगा देश है।यहां के लोग टोपियां तक अलग-अलग रंग की पहनते है। उसके देश में लोग कपडे तो जरुर रंग-बिरंगे पहनते है पर उनकी टोपी या कैप केवल दो-चार रंग की ही होती है। सालों साल लोग उन रंगों पर गुजारा करते है कभी भी उनसे ऊबते नही है। पर इस देश की तो हर बात निराली लग रही है, लगता है मुझे अपनी मिट्ठी के लिेए यहाँ से जरुर अच्छी कहानी मिल जाएगी। मिट्ठू को गंभीर मुद्रा में सोचते हुए देख पप्पू ने उसे टोकते हुए कहा

--क्या सोचने लगे यार अच्छा ! चलो छोडो ! चुनाव-तनाव की बातें तुम विदेशी तोतों को हमारी डेमाक्रेसी के लटके-झटके कभी पल्ले नही पडेगे। इसलिए अब मुझे बताओं तुम यहां क्यों आए हो ? क्या यहाँ से अपनी दुल्हन ढूंढने आए हो? तुम्हें पता है यहाँ के लोग विदेश में रहकर भी अपने लिए दुल्हन यहीं ढूंढने आते है। और अगर दुल्हन ढूंढने नही आए तो मैं पक्के तौर पर कह सकता हूँ कि तुम यहाँ जरुर नौकरी की तलाश में ही आए होंगे ? मैने यहाँ के कुछ आदमियों को बातें करते सुना था कि दूसरे अमीर देशों में जबरदस्त रिशेसन चल रहा है। वहां सब रोजगार-धन्धे बंद हो रहे है, जिसके कारण इस देश की पलायन प्रतिभाएं वापिस अपनी प्रतिभा का जलवा दिखाने स्वदेश लौट रही है। क्यों मैने ठीक कहा ना ?

--इतने सारे सवाल और इतनी सारी बातें सुनकर मिट्ठू थोडा अचकचा गया। अपने व्यवहार को संयत करते हुए बोला --नही यार पप्पू मैं यहाँ इन दोनों में से किसी की भी तलाश में नही आया हूँ, बल्कि मैं तो यहां एक अदद कहानी की खोज में आया हूँ। दरअसल बात यह है पप्पू कि मैं  अपनी महिला मित्र मिट्ठी के लिेए उसकी मांग पर बिल्कुल एक नई तरह की कहानी खोजने आया हूँ। मिट्ठू ने गर्व से कहा।

मिट्ठू की बात सुनकर पप्पू का मुँह आश्चर्य से खुला रह गया। वह हैरानी से मिट्ठू की ओर देखता हुआ बोला-
क्या ? इतनी दूर से बस इसी काम के लिए आए हो ? वो भी महिला मित्र के लिए? महिलाओं को खुश करने के लिेए इतनी मेहनत ? महान है यार तुम और तुम्हारा देश !! खैर.. जब आ ही गए हो तो जरा बताओ कहाँ-कहाँ और किस तरह ढूंढोगे कहानी? और कैसेी कहानी चाहिए ? राजा-रानी की, जंगल-पहाड की, या फिर साँप-सपेरे, हाथी-घोडे़, बंदर-कलंदर, शेर-शिकारी की ? बताओ हो सकता है मैं तुम्हारी कुछ मदद कर पाउं-- पप्पू ने कहा।

--नही यार पप्पू ! इस तरह की सब कहानियां तो मैं अपनी मिट्ठी को कई-कई बार और हजारों सुना चुका हूँ। इस बार मुझे कुछ नई कहानी चाहिए। बिल्कुल नई जो उसने पहले ना कभी सुनी हो और ना कभी सोची हो। उस कहानी में ना राजा-रानी हो, ना नौकरानी हो। वह ना नदी -नाले के ऊपर हो ना धरती- आसमान पर हो । वह कुछ अनोखी, पर कुछ आम सी लगने वाली हो । उस कहानी में कुछ खास होते हुए भी साधारणता का पुट हो। यानि ऐसी सर्वगुण सम्पन्न कहानी जो एक ही बार में उसे पसंद आ जाए। अगर मैं उसके मन पसंद कहानी नही सुना पाया तो वह मुझे छोड किसी और डाल पर बैठ जाएगी।

अब पप्पू को कुछ-कुछ बात समझ में आयी। भई यह तो मर्द के अंदर बैठी सनातन इगो की बात है। अब तो उसे हर हालत में मिट्ठू की मदद करनी ही पडेगी नही तो समस्त मर्द जात की गर्दन शर्म से झुक जाएगी। पप्पू ने कुछ पल सोचा और फिर मिट्ठू से कहा- क्या कोई ऐसी कहानी चल जायेगी जिसमें लोग खास होकर भी अपने आपको आम आदमी मानकर, आम आदमी के लिए और आम आदमी के साथ होने जैसा समझते हो और जताते हो। मिट्टू ने कहा- हाँ-हाँ बिल्कुल ऐसी ही  कहानी मिट्ठी को अच्छी लगेगी। एकदम फ्रेश-फ्रेश कहानी। मिट्ठू को पप्पू की आम आदमी की,आम आदमी के लिए, आम आदमी द्वारा वाली कहानी का थीम बहुत पसंद आया। अब वह उसी थीम पर ही अपनी कहानी बुनना चाहता था। मिट्ठू ने हां में सिर में हिलाकर अपनी सहमति दे दी। सहमति मिलते ही पप्पू ने एक भेद-भरी मुस्कान से मंद-मंद मुस्कुराते हुए उसे एक कार्ड पकडा दिया। कार्ड पर लिखा था वंचित जागृति संघ। पता पूछने पर पप्पू ने सामने जा रही मेट्रो लाईन के तरफ इशारा करते हुए कहा सामने देख यार जो वह मेट्रों लाईन जा रही है ना, बस उसके साथ-साथ उड़ता जा। आखिर में जहां वह लाईन खत्म हो जाए, ठीक उसके सामने  नाक की सीध में एक काले रंग की बडी सी भव्य इमारत खडी है। सीधे उसी इमारत में अंदर चले जाना, शायद वही तुझे तेरी मिट्ठी की मनपसंद कहानी मिल जाऐ।

मिट्ठू ने उड़ते हुए उस आलीशन भवन जैसी दिखने वाली के इमारत के चारों ओर घूम-घूमकर दो-तीन चक्कर लगाए। उस इमारत में अंदर घुसने के लिए एक बडा सा गेट लगा था। गेट पार करने के बाद एक लंबा सा गलियारा सीढियों के रास्ते ऊपर की ओर जा रहा था। सीढियां गहरे-गहन अंधकार में डूबी हुई थी। अंधेरे में डूबी सीढियां उड़ते- उड़ते वह कई बार उसका सिर दीवार से टकराते-टकराते बचा पर आखिरकार वह उस इमारत के पाँचवे माले पर पहुँच ही गया। बाहर घिसे-पिटे धुंधले पड चुके बोर्ड पर लिखा था वंचित जागृति संघ। मिट्ठू को लगा जब ऊपर तक आने का रास्ता इतना घटिया है और बोर्ड इतना घिसा पिटा है तो अंदर ना जाने क्या हाल होगा। वह मन ही मन पप्पू को कोस रहा था कि उसने मुझे कहां भेज दिया। पता नही उसे यहाँ उसकी मनपसंद कहानी मिलेगी भी कि नही। निराशा के सागर में गोते खाते हुए उसने अनमने भाव से वंचित जागृति संघके दफ्तर का दरवाजे के ठीक बगल में बनी खिडकी जो संयोगवश उस समय खुली थी, उससे अंदर प्रवेश किया। दफ्तर के अंदर घुसते ही मिट्ठू की निराशा से भरी आंखे  चवन्नी भर आश्चर्य से फैल गई। अंदर झांकते ही उसकी तबियत खुश हो गई। बडे-बडे चार आलीशान कमरे, एक किचन, दो बाथरुम और बीच में एक बडा मिटिंग हॉल। अंदर चल रही कार्यवाहियों को देखने के लिए मिट्ठू एक शातिर जासूस की तरह ऊपर एक खिडकी पर जा बैठा। वह वहां कुछ दिन रुका और फिर खुशी-खुशी उड़कर अपने देश की ओर उड़ चला। उडते-उडते वह सोच रहा था कि उसके हाथ ऐसी कहानी लगी है जो आज तक किसी ने भी नही सुनी होगी। ऐसी उम्दा कहानी के लिए वह मन ही मन पप्पू का धन्यवाद देने लगा।

मिट्ठू की कई दिनों की लगातार उडान के कारण हुई थकान उसी समय रफूचक्कर हो गई जब उसने मिटठी को अपने इंतजार में बैठे हुए पाया। पल भर में वह हाथ मुँह धोकर, तरोताजा हो मिटठी के पास आ पहुँचा। मिटठी को गुदगुदाते हुए वह बोला- अरे मेरी मिट्ठी मेरे बिन तेरे दिन कैसे बीते? मेरी याद सताई कि नही? जबाब में मिटठी ने दुखी होते हुए कहा- क्या कहूं मिटठू तुझे कहानी ढूंढने भेजने के बाद रोज मेरा सिर चिंता से भारी हो जाता था। रोज बुरी-बुरी खबरे सुनने को मिलती थी। कहीं किसी देश में भूकंप आया है तो किसी में सुनामी। सुनने में आया कि किसी  देश में तो लगातार हो रही बारिश के कारण आई बाढ़ से एक बहुत बडा और खतरनाक परमाणु बिजली घर ढह गया, जिससे हजारों लोगों को रेडियेशन लग गया। रोज आए दिन होने वाली किसी ना किसी देश में तख्ता- पलट बाद हुई भंयकर खून-खराबे की खबरें सुनकर मैं घबरा जाती थी। दुनिया में हो रहे ऐसे बुरे-बुरे हालतों को देखकर मैं तुझे याद कर मन ही मन पछताती थी और सोचती थी कि क्यों तुझे जाने दिया। एक ही सांस में इतनी सारी बातें एक साथ कहने के बाद उसने लंबी सास छोडते हुए कहा- खैर.. छोडों मैं भी क्या तुम्हे यह सब सुनाने बैठ गई। अब जब तू वापिस आ गया है तो मेरी सारी चिंता दूर भाग गई है। अब तू कोई कहानी मुझे सुना या ना सुना पर मैंने यह फैसला कर लिया है कि मैं यह डाल मरते दम तक नही छोडूंगी। इतने दिन तुझसे अलग रहने के बाद मुझे पहली ऐसा बार महसूस हुआ कि सच में, मैं तुम्हें दिल की गहराईयों से प्यार करती हूँ। तुम्हारे जाने के एक-दो दिन बाद ही मुझे बेहद अकेलापन महसूस होने लगा। मुझे लगने कि मैं इस डाल पर ना जाने कब से अकेली बैठी हूँ।यह कहते-कहते वह मिट्ठू के साथ और चिपक कर बैठ गई। मिटठी की रसभरी बातें सुनकर मिट्ठू को हजारों टन नशा हो आया। वह उसी नशे में मिटठी को प्यार से निहारते हुए गला खंखार कर बोला- तो चल तैयार हो, मैं तुझे कहानी सुनाता हूँ। यह कहकर वह पूर्ण मनोयोग से  अपनी प्यारी मिट्ठी को कहानी सुनाने बैठ गया ---

एक थे हडबडजी। दिमाग से तेज और दुरस्त। एक- एक मिनट में कई-कई नये-नये आईडियों को एकसाथ जन्म दे देते थे। संदेह होता कि कहीं उनके दिमाग की जगह कोई आईडिया बनाने की मशीन तो फिट नही है। इन नये-नये आईडियों को पालन करवाने के लिए उनके पास अपनी एक गैर सरकारी सामाजिक संस्था भी थी। उस संस्था का नाम था वंचित जागृति संघ। सुना है वहाँ के लोगों में अपनी बेटियों को दहेज के नाम पर ऐसी वंचित जागृति संघ टाईप की संस्थाएं बनाकर देने का रिवाज दिन पे दिन बढता जा रहा है। खैर यह एक दूसरी कहानी है। दहेज में संस्थाएं देने वाली कहानी फिर किसी और दिन सुनाऊंगा। फिलहाल अभी तो मैं हडबडजी की कहानी सुना रहा हूँ। कुछ साल पहले हडबडी जी के कुछ लोकतांत्रिक विचारधारा के दोस्तों ने हडबडजी की मदद करने के लिए वंचित जागृति संघ नामक संस्था बनाई थी और उन्ही लोगों की लगातार मदद से वह संस्था लोकतांत्रिक ढंग से चल भी रही थी। ऐसे लोकतांत्रिक परिवेश में हडबडजी को अपने नये- नये आईडिया लागू करने और करवाने में बडी दिक्ततें आती थी, इसलिए धीरे-धीरे करके उन्होने वंचित जागृति संघ में से ऐसे लोकतांत्रिक लोगों को एक-एक करके  पीछे की तरफ सरका दिया और उनके बदले अपने आस-पास मक्खन में डूबे, तलवे चाटू, रीड की हड्डी रहित लोगों को अपने साथ जोडकर उन्हे बडे-बडे पदों पर रख लिया।

इस तरह जब हडबडजी का साम्राज्य वंचित जागृति संघ में पूरी तरह कायम हो गया तब उनकी पोजिशन बिल्कुल एक आधुनिक राजा की तरह हो गई। ऐसा राजा जिसकी आज्ञा के बिना संस्था में एक पत्ता तक नहीं हिल सकता था। जब-जब राजा साहब उर्फ हडबडजी को किसी सभा-वभा में शामिल होने के लिए जाना होता तो मात्र उनके एक इशारे के इंतजार में खडी उनकी प्यारी-सी अत्याधुनिक चमचमाती कीमती कार  दरवाजे पर तुरंत हाजिर हो जाती। कीमती कार और ड्राईवर के अलावा उन्होने अपनी स्तुतिगान के लिए पुराने जमाने के चारणभाट की तर्ज पर अपने सबसे बडे अफसर घुग्घुजी को विशेषरुप से ट्रेंन कर रखा था। वह अफसर जहां कही भी जाता उनकी दरियादिली, वीरता, सादगी और त्याग के झंडे गाड़ कर ही आता। पहले तो यह अफसर रुपी चारण शरमा-शरमी चोरी छिपे हडबडजी का यशगान करता था, लेकिन पिछले कुछ समय से वह खुलकर हडबडजी के लिए भाटगिरी करने लगा था। इसके अलावा अपने साम्राजय को कायम रखने के लिए हडबडजी जगह-जगह से देशों-विदेशों से श्वेत-अश्वेत लोगों को दूत की तरह बुलाने लगे। जब वे श्वेत-अश्वेत लोग उनके बुलावे पर आ जाते तो हडबडजी और उनकी टीम के सदस्य सबसे पहले उन्हे अपने साम्राजय की सीमा-प्रदेश दिखाते, और फिर वहां के अशिक्षित-असहाय-गरीब-शोषित वाशिंदो की बदहाली की गंभीर तस्वीर खींच कर विदेशी दूतों से उनकी मदद करने के लिए गुहार लगाते। अपने विदेशी मित्रों को उस गरीब गंदे साम्राजय में घुमाने के बाद हडबडजी उनको अपनी गाडियों में बैठाकर फाईव स्टार होटल में उम्दा डिनर करवाते। इतना लजीज खाना और इतने गरीब लोगों को देखकर वे हडबडजी को हरसंभव मदद करने का वायदा कर विदा हो जाते।

मिट्ठू ने कहानी आगे बढाते हुए कहा--सुन मेरी प्यारी मिट्ठी जब किसी का साम्राजय बढ रहा होता है तो उसको मैन्टेन करने के लिए वफादारों की एक पूरी फौज की जरुरत होती है। इसलिए हडबडजी के वफादारों की सूची में रोज नये-नये नाम जुड रहे थे। कोई साफेवाला तो कोई धोती वाला। कोई दामपंथी तो कोई कंगालपंथी। उनकी महत्वकांक्षाए पूरे उफान पर थी और उनके साम्राजय के वफादार भी उनकी महत्वकांक्षाओं की ज्वाला को भड़काते हुए उनमें खूब चटकीले-भडकीले,काले-सफेद रंग भरने में लगे हुए थे। पर हडबडजी की दुनिया, उनके सपने इससे भी कही और आगे थे, आसमान से भी ऊंचे, अंतरिक्ष के भी पार।   

एक बार हडबडजी गहरी नींद में सो रहे थे। सोते-सोते उनको सपना आया कि कि वह यकायक यानि अचानक वे देश के प्रधानमंत्री बन गए है। दूर-दूर तक उनके पीछे चलने वाली कारों का काफला  खडा है। सड़क के चारों ओर रंग-बिरंगी झंडियां लगी है। उनके प्रधानमंत्री बनने की खुशी में सफेद-लाल-नीले गुब्बारे आकाश में उडाए जा रहे है। सामने खडे हैलीकाप्टर तक जाने लिए बने मार्ग को  गुलाब की नरम-नरम पंखडियों से ढ़क कर लाल कारपेट का रुप दे दिया गया है। उनकी रक्षा के लिए उनके अगल-बगल में चुस्त दुरुस्त स्मार्ट चार-चार ब्लैक कामांडो तैनात है, बगल में उनके लिए खडी लाल बत्ती वाली सरकारी गाडी से चुई-चुई-चुई की आवाज आ रही है। लोग अपनी-अपनी हैसियत और विचारधारा के अनुसार उनके गले में तरह-तरह के फूलों की माला पहनाने के लिए धक्का-मुक्की मचा रहे है। उनकी धक्का-मुक्की से खुश होकर उन्होने भी जोश में भरकर कुछ मालाएं लोगों की तरफ उछाल दी। लोगों ने खुशी से उनको कंधे पर उठा लिया और जोर-जोर से उपर-नीचे उछालने लगे. फिर उन्हें धीरे से नीचे उतारकर खडा कर दिया। उनके सामने खडे होते ही भारतीय पारम्परिक वेश-भूषा में सजी-धजी औरतें उनकी आरती उतारने लगी। आरती के बाद वंचित जागृति संघ के यूथ बिग्रेड के लीडर चक्करुराम और उसके साथी हडबडजी को अपने कंधों पर चढाकर घुमा ही रहे थे कि तभी चक्करुराम की निगाह एक सुंदर कन्या पर जाकर टिक गई, तुरंत चक्करुराम के पैर लडखडा गए। हडबडजी चक्करुराम व उसकी पूरी बिग्रेड सहित नीचे धडाम से आ गिरे। नीचे गिरने से अचानक हडबडजी की नींद खुल गई। आँखें खुली तो देखा कि वे  अपने क्वीन साईज डबल बैड की जगह जमीन पर औंधे मुँह पडे थे। अपने को जमीन पर औधे मुँह पडे देख उनके मुँह से अनायास ही गाली निकल गई- साला सपने में भी मैं प्रधानमंत्री नही बन सका।

वैसे अक्सर इस तरह के सपने वे दिन में भी खुली आँखों से देखते रहते थे। दुख की बात तो यह थी कि इस तरह के सपने देखते-देखते उनकी पूरी जवानी बीत गई। और अब प्रौढावस्था भी बीतने जा रही है। आने वाले महिने में वे बासठवें साल में प्रवेश करने जा रहे है। उन्हें लगने लगा था कि यदि उम्र के इस पडाव में भी प्रधानमंत्री पद तो दूर, अगर नेता, मंत्री या राज्यसभा का मनोनीत सदस्य नही चुने जा सके तो फिर जिंदगी में वे कभी कुछ नही कर पाएगे। ऐसी जिंदगी का क्या फायदा। उनका हीरे जैसा जीवन व्यर्थ चला जाएगा। अपना हीरा सम जीवन सुफल करने का अब उनकी निगाह में मात्र एक ही रास्ता शेष था, और वो रास्ता था कि वे समाज के प्रभावशाली लोगों के सामने अपने आपको इतना फ्रंट लाईन में लाए कि जिससे उनकी बढती लोकप्रियता को देखते हुए आखिरकार मजबूरी में ही सही कोई ना कोई राजनैतिक पार्टी या तो उन्हे चुनाव का टिकट दे देगी और ये भी ना हो तो कम से कम कोई ना कोई क्षेत्रीय पार्टी कम से कम राज्यसभा  का मानित सदस्य तो जरुर बनवा ही देगी। पर इसके लिए भी उन्हे विशेष प्रयास तो करने ही होगे ना।

बडे-बडे प्रभावशाली लोगों की निगाह में अपने आप को भविष्य का शोषित-वंचितों का लीडर की तरह प्रोजेक्ट करने के लिए उनके मन में एक जोरदार आईडिया आया। लीडर बनने के सार्थक प्रयासों में पहलेपहल उन्होने अनेक बार उंची पदवी वाले नौकरशाहों, मंत्रियों के पी.ए और बिजनैसमैनों, पी.आर वालों के सम्मान में बडे-बडे होटलों में डिनर-पार्टी रखी। ये भव्य डिनर-पार्टियां समाज उत्थान के नाम मीटिंगों के रुप में रखी जाती थी। इन डिनर-पार्टियों में खूब बोतले चलती और मुर्गे उडते। पर अफसोस! होता यह कि सारे लोग खाना खाते, पेट पर हाथ फेरते और खिसक जाते और दुबारा तब ही शक्ल दिखाते जब फिर से कोई डिनर पार्टी हो। अपने को भविष्य का लीडर वाले  आईडिया को सच होता देखने के लिए प्रभावशाली लोगों को डिनर करवाने में ही उन्होने वंचित जागृति संघ के लाखों रुपये फूंक डाले।


पहले आईडिया से बुरी तरह असफल होकर उन्हें अब दूसरा आईडिया सूझा कि वे अब राजनीति में सीधे ना जाकर बैक्डोर से एन्ट्री मारे। इस आईडिया से उत्साहित होकर उन्होने तमाम तरह के क्षेत्रीय, जिला व ब्लाक स्तर यहाँ तक की गांव तक के कई छोटे-छोटे छुटभैये नेताओं को अपनी संस्था वंचित जागृति संघ में लाकर उनसे बोरिंग, बेतुके भाषण करवाएं और लोगों को झूठे वादे दिलवाएं। इन तरह- तरह के छुटभैये नेताओं को अपने आफिस तक आने के लिए वे उन्हें टैक्सी के किराए से लेकर हवाई जहाज तक टिकट देने लगे। पार्टी-टिकट मिलने के लालच में हडबडी जी कभी-कभी तो उन नेताओं के लिए किसी-किसी हिल स्टेशन पर सपरिवार छुट्टिया बिताने के लिए होटल तक बुक करवाके दे देते थे। पर उन बेचारों छुटभैये नेताओं की क्या हैसियत ।वे बेचारे तो हडबडजी के लिए पार्टी का टिकट तो दूर किसी 20-20 क्रिकेट मैच तक का अदद टिकट भी ना दिलवा सके। सच बात तो यह थी अगर वे हडबडीबाज को टिकट दिलवा सकने की हैसियत रखते तो क्या वे खुद अपने लिए टिकट अरेंज ना कर लेते। और टिकट मिलना और चुनाव लडना इतना आसान होता तो सबसे पहले ये बेचारे खुद अपना चुनाव लडने और जीतने के बाद खुद ऐश ना कर रहे होते ? आखिरकार यह आईडिया भी फेल हो गया। यह आईडिया उनके लिए कम, पर उनकी संस्था के लिए खूब भारी पडा। कई लाख इसमें भी उड गए।


हडबडजी को कही से भी टिकट ना मिलने के कारण उनकी बढती हुई बैचेनी देख उनके एक  शुभचिंतक से ना रहा गया। उसने उन्हे आईडिया दिया कि आप अखबार में अपना एक बडा फोटो और उसके साथ अभी तक जनहित में किेए अपने तमाम कार्यों का बडा सा विज्ञापन दे दें। फिर देखिए आप घर बैठे-बैठे रातोंरात सारी दुनिया में फेमस हो जायेगे। फिर देखे कौन आपको टिकट नही देगा, सालो को झक मारकर भी आपको चुनाव लडवाना पडेगा। सलाह देने वालों की बातों में दम देखकर उन्होने दूसरे ही दिन दो-तीन  राष्ट्रीय अखबारों में अपनी गरीब दलित हितैषी छवि वाले बडे-बडे विज्ञापन छपवा डाले। अखबार में अपना इतना बडे-बडे फोटो वाला रंगीन एड देख वे फूल-फूलकर गुब्बारा हो रहे थे। इसी फूले गुब्बारेपन में उन्होने ना जाने कहाँ कहाँ अनेक फोन और एस.एम.एस यह कहकर कर डाले कि देखो अखबार ने मेरा कितना बडा एड छापा है। पर अगले ही दिन वह गुब्बारा फूट गया। जो भी शख्स विज्ञापन पढता उन्हे तुरंत फोन करता। एक तरफ गरीब-दलित लोग अपने ऊपर होने वाले अत्याचार,अन्याय के किस्से सुनाने और न्याय दिलाने के लिए दिन-रात फोन करने लगे। तो दूसरी तरफ कुछ टटपूंजिए छुटभैये लोकल लीडर टाईप लोग हडबडजी को किसी भी पार्टी का-टिकट हाथोंहाथ- रातोंरात दिलवाने के लिए किसी भी पार्टी-अध्यक्ष से मिलवाने के एवज में उनसे अपने और अपने दोस्तों के बस पेट्रोल-मोबाईल-होटलों आदि का बिल भरने की फरमाईश-ख्वाईश सामने रखते। जनता का एक नुमाईंदा तो उनके चुनाव में खडे होने में हजार वोट दिलवाने के पक्के वादे के बदले एक प्रसिद्ध मॉल में अपने लिए नई दुकान लेने की मांग कर बैठा। हडबडजी के मना करने पर अखबार में पेश की गई उनकी गरीब-दलित हितैषी वाली झूठी छवि की पोल खोल देने की धमकी देने लगा। बार-बार, लगातार ऐसे ऊट-पटांग फोन आते रहने से उन्हें बडी तेज गुस्सा आ गया। गुस्से में भरकर अंतत; उन्होने अपना महँगा कीमती फोन एक ओर पटक मारा। उनका दिल ही उनके दुख को जानता था। उन्हें जनता में नही, पार्टी और नेताओं की नजर में लोकप्रिय होना था। भले वोट जनता से लेना हो पर सीट तो पार्टी और नेता ही देगा ना कि जनता।

जब वे चारों तरफ से थक-हार गए और कोई उपाय काम नही आया तो अंत में उन्होने सोचा कि अब शर्म का चोला एक तरफ उतार फेंक अब पूरी बेशर्मी से काम लेना होगा। मनमाफिक घी निकालने के लिए उंगली टेढी करनी ही पडती है। अब चाहे जो हो जाए, चाहे जितना पैसा और समय लग जाएं वे अपने-आपको राजनीति में उतारने की घोषणा कर देंगे। अपने नेता बनने के सपने वे खुद करेगे। किसी के भरोसे नही बैठेंगे। नेतागिरी में उतरने के कार्यक्रम को खुद चौक- आउट करेगे। इसके लिए पहले कदम के तौर पर उन्होने सबसे पहले अपने करीबी हितैषी लोगों के कोर ग्रुप को इकटठा किया और अपनी संस्था वंचित जागृति संघ के बैनर तले सर्वरंगी व बहुरंगी सभा बुलाने का निश्चय किया। कोर ग्रुप की क्लोज सभा में निश्चित किया गया कि नेतागिरी की धोषणा सभा के लिए सभी तरह के रंग वाले लोगों को बिना किसी भेदभाव के आमंत्रित किया जाएगा। सभा के लिए एक बडा हॉल बुक होगा जिसमें बढिया लंच-डिनर का इंतजाम होगा। सभा में आने वालों को एक-एक सुंदर बैग उपहार-स्वरुप दिया जायेगा, जिसमें हडबडजी के दो-तीन भिन्न-भिन्न पोज वाले रंगीन फोटो के साथ उनका जीवन-परिचय, जीवन-संघर्ष, और जीवन- संदेश भी रखा जायेगा। नजदीकी-करीबी-हितैषी कोर-ग्रुप के लोगों ने मिलकर सर्वसम्मति से तय किया कि हडबडजी को नेता बनाने के लिए और उनको जनता के चहेते के रुप में पेश करने के लिए जरुरी है, एक उद्देश्यपूर्ण विशाल यात्रा निकाली जाए। सामाजिक समस्या के रुप में आजकल सबसे बडी समस्या लोगों का जाति व वर्ग में बँटा होना है इसलिए इन पर मिलकर प्रहार करने के लिए एक जाति तोडो वर्ग बनाओ रैली कम यात्रा का आयोजन किया जाएं। कोर ग्रुप ने अंत में यह भी तय किया कि अगली बडी आम- मिटिंग में हडबडजी के बाहर से आए समर्थको के साथ स्पष्ट और सफल रुपरेखा बनाई जाएगी।

आज वंचित जागृति संघ की आम- सभा है जिसमें पूरे देश से लोग आए हैं। कोर ग्रुप में पूर्व निर्धारित ऐजेन्डे के अनुसारजाति तोडो वर्ग बनाओ रैली-यात्रा कहां-कहां से गुजरेगी,  कहां-कहां रूककर लोगों से बात करेगी, इस पर आज हडबडजी सबके सामने रुबरु होकर खुली चर्चा करेगे। इस मौके पर वे खास तौर से सादर आमंत्रित थे जो हडबडजी के खासम-खास और प्रशंसक थे। सबको आने-जाने के लिए भली-भांति यात्रा खर्चा-भाडा दिये जाने का पूरा वायदा था। कार्यक्रम में बाहर से आने वाले कुछ लोग हडबडजी के बहुत करीबी होने या फिर खुद को बहुत बडा वी.आई.पी. समझने व सिद्ध करने के कारण रेल के थर्ड स्लीपर क्लास में आने से स्पष्ट इंकार कर शताब्दी व राजधानी के फर्स्ट क्लास से या फिर हवाईजहाज से भी आए थे। सभा के लिए लोग जानबूझ कर एक-दो दिन पहले से ही आने शुरु हो गए थे। इनके आराम करने के लिए एक मंदिर की धर्मशाला के दरवाजे खुलवा दिए गए थे। एक- दो चुनिंदा लोगों के लिए होटल भी बुक किया गया था। कार्यक्रम में जल्दी टपकने वाले लोग चोरी-छिपे, प्राईवेटली-प्राईवेटली हडबडजी से गुपचुप रुप में अपने लिए रुपयों के इंतजाम की बातें करने या अपने आगे आने वाले दिनों के लिए कुछ-कुछ काम सेटिंग करना चाहते थे।

मिस्टर हडबडजी कुछ साल पहले एक मल्टीनेशनल कम्पनी में सी. ई. ओ थे। कम्पनी के ऑफिस-टाईम में उनको इतने ज्यादा काम रहते थे कि वे समाज सेवा के लिए मनमुताबिक समय नहीं दे पाते थे। इसलिए उन्होंने रिटायरमेंट के अधिकांश लाभ लेते हुए साठ साल होने से दो-तीन साल पहले ही नौकरी छोड़ दी थी। अब वे पूर्ण रुप से वंचित जागृति संघ के भीम-मिशन के लिए समर्पित होकर काम करना चाहते थे। यह संस्था उन्होने अपनी जवानी के दिनों में आईडियलिज्म के चलते  कालेज खत्म होने के बाद अपने जैसे आईडिलिस्टिक दोस्तों के साथ मिलकर रजिस्टर्ड कराई थी। हडबडजी के पास लोगों को प्रभावित करने वाली प्रभावशाली भाषण कला थी, ज्ञान का अद्भुत भंडार था। वह जहां कहीं भी जाते हमेशा कोट-पैंट-टाई में ही जाते थे। उनके अंग्रेजीमय अंदाज की नफासत और वेशभूषा देखकर शोषित-पीडित समाज में उनके रूतबे का प्रभाव दुगना बढ जाता था। आज वे जितने रईस है, बचपन में उतने ही तंगहाल थे। उनका बचपन भयंकर गरीबी में बीता था। उनके पिता भोलाजी साधारण मजदूर थे और माँ कमेरी दूसरों के घर बर्तन माँजने का काम किया करती थी। इस भयंकर गरीबी में भी दोनों पति-पत्नी बडी लगन और मेहनत से अपने सारे बच्चों को पढा रहे थे। पर उनका काफी खर्चा हडबडजी पर ही होता था। हडबडजी ने भी खूब पढ-लिखकर उनकी मेहनत का उन्हे बहुत अच्छा फल दिया. वह अपने आस-पास के घरों में सवसे पहले सी.ई.ओ. बने। जब उनकी नौकरी लगी तो कंपनी की एक गाडी उन्हें घर लेने और छोडने आती थी। दरवाजे पर कंपनी की गाडी खडी देख अनपढ- गरीब माँ-बाप का सीना गर्व से फूल उठता था। हडबडजी ने पहली बार अफसर बन परिवार में जन्मना मजदूर पैदा होने की परंपरा को बेरहमी से तोडा था। उऩ्होने अपने माँ-बाप की तरह मजदूरी ना करते हुए कुर्सी पर हुकुम चलाने की भूमिका अपनाई थी।

यूं भी दलित समाज जो हजारों साल से सब तरह की मानवीय सुख-सुविधा और संसाधनों से वंचित रहा उस समाज में अब कोई ना कोई सदस्य किसी ना किसी प्रकार से विरासत में मिली परम्परा को तोड़ ही रहा है। कोई बारहवीं पास करके अपने परिवार के माथे पर लगे अशिक्षित होने के कलंक को मिटा रहा है, तो कोई सरकारी नौकरी में जाकर पीढी-दर-पीढी जूता गांठने की परम्परा को अंगूठा दिखाने का काम कर रहा है। कहीं किसी परिवार में लड़की टीचर बनकर झाडू लगाने को लात मारकर दूर कर रही है, तो कोई दिहाड़ी मजदूर बनकर नट की तरह रस्सी पर झूलने से साफ इंकार कर चुका है। दलित समाज में बदलाव तो आ रहा है पर धीरे-धीरे और खूब सोच समझ कर। डॉ.अम्बेडकर द्वारा दिखाई गई शिक्षा की टांर्च हर अंधेरे कोने में उजाले भरने का काम कर रही है। पर अब पिछले दस-पन्द्रह सालों से दुनिया बहुत तेजी से भाग रही है। चारों तरफ बदलाव की तेज आंधी चल रही है। इस तेज आंधी में अब साफ-साफ दिखने लगा था कि बदलाव की इस आंधी को जन्म देने वाला एक तबका अपनी राह से भटककर घोर व्यक्तिवादी, सत्ता-लोलुप, पॉवर के भूखे अहंकार में चूर पतनशील लोगों के पाले में जाकर बैठ रहा है। हडबडजी और उनकी टीम को देखकर कभी-कभी ऐसा महसूस होने लगता था कि उस तेज आंधी में उनके जैसे लोग आंखे बंद किए केवल और केवल अपने बारे में ही सोचते हुए आगे-आगे बढे जा रहे है। जब उनके साथ  मानव-अधिकार कार्यकर्ता, स्त्रीवादी, सामाजिक न्यायवादी, मजदूर-किसान-दलित हितैषी तक शामिल होने लगे तब यह प्रश्न उठना स्वाभाविक था कि इस बदलाव की आंधी का भविष्य क्या होगा?

मिस्टर हडबडजी ने गला खंखार कर बोलना शुरू किया-- 'साथियों हमें काम करते हुए लगभग 40 साल होने वाले है। हमने भीम मिशन बनाकर क्या खोया क्या पाया इसका मूल्याकंन हम बाद में करेगें। आज हम अपनी संस्था वंचित जागृति संघ और उससे जुड़े लोगों की चारों तरफ एक पुख्ता पहचान बने इसके लिए हम चाहते है कि शहर में एक ऐसी विशाल और भंयकर रैली निकाली जाएं जिससे शहर के बच्चे-बच्चे को पता चल जाएं कि वंचित जागृति संघ किस चिड़िया का नाम है। तो साथियों इसी संदर्भ में आज यह राष्ट्रीय गोष्ठी आयोजित की गई है। आप सब से अनुरोध है कि मैं जिस-जिस वक्ता का नाम पुकारुंगा वह यहां मंच पर आकर अपना वक्तव्य रखेगा। बाकि सब लोग उसे ध्यान से सुनेगे। सबसे पहले मैं आमन्त्रित कर रहा हूं चमचमीजी को। वे हमारी 'महिला मैत्री संघ' की अध्यक्षा है। महत्वपूर्ण बात है कि वे हमारी संस्था वंचित जागृति संघ बनने के शुरूआती दौर से जुड़ी हुई है। हमारे वंचित जागृति संघ और उनकी महिला मैत्री संघ का एक गहरा भावनात्मक रिश्ता है ।खुशी की बात तो यह है कि चमचमीजी अन्य महिला नेताओं की तरह महिला-महिला करते हुए उनकी दुर्दशा का झूठा गाना नही गाती फिरती। इन्होने हमेशा से महिला- संघो के नाम पर बहन-बेटियों के साथ बहनापा जैसी संकीर्ण भावनाओं की अपेक्षा बेटों और भाईयों के बीच में भाईचारा भाव को ज्यादा महत्व दिया है। भाईयों-बेटों के समर्थन में उनका यह भाईचारा भाव अन्य महिला संगठनों द्वारा वर्णित महिला-शोषण के झूठे महिमामंडन के खिलाफ सबसे बडा क्रांतिकारी कदम है। इन्होने भारत के नारीवाद को नया नारा दिया है। इनका मानना है कि पुरुषों की आजादी में ही महिलाओं की आजादी छिपी है। जब तक इस देश का पुरुष आगे नही बढेगा तब तक महिलाएं कैसे आगे बढेगी? चमचमी जी की खासियत है कि उन्होने इस सत्य को समझा और पुरुषों को आगे लाने की सोची। मुझे पूर्ण विश्वास है कि हमारी चमचमीजी एक दिन सामाजिक परिवर्तन की राह महिलाओं से मोडकर पुरुषों की तरफ लाने में जरुर कामयाब हो जाएंगी जिससे महिलाओं का उद्धार अपने आप हो जाएगा। खैर.. अब मैं उनकी ज्यादा तारीफ ना करते हुए उनसे विनम्र अनुरोध करता हूँ कि वे मंच पर आएं और अपना वक्तव्य रखते हुए इस प्रेम-प्यार के भूखे व अभावग्रस्त समाज को जगाने का काम करें। आप उनका स्वागत तालियों की गडगडाहट से करें। अपना नाम पुकारे जाने पर भीड़ से एक पतली- दुबली मरियल सी महिला उठी और उसने मंच पर आकर आशा के विपरित अपनी मोटी आवाज़ में बोलना शुरू किया। आदरणीय हडबडजी मैं आपकी बहुत-बहुत आभारी हूँ जो आपने मुझे यहाँ बोलने का मौका दिया। मैं हर बार की तरह इस बार भी लोगों से एक नारा जरुर लगवांऊगी। मुझे उम्मीद है इस नारे को आप जितनी जोर से हो सके उतनी जोर से बोलेगे हडबडी भाई आप संघर्ष करो चमचमी मैडम को इस उम्र में भी इतने जोरदार तरीके से नारा लगाते देखकर लोगों में अंदर मानों हडबडजी के प्रति अपनी-अपनी निष्ठा दिखाने की होड़ सी मच गई। इसलिए वे एक-दूसरे से ज्यादा ऊंची आवाज में हडबडजी को अपनी आवाज सुनाने के लिए पूरे जोश-खरोश के साथ हाथ हिलाहिलाकर वापिस चिल्लाकर बोले- हम तुम्हारे साथ है, हम तुम्हारे साथ है।

हडबडजी मंच पर बैठे-बैठे अपने नाम के नारे लगते देख फूल-फूल कर कुप्पा हो रहे थे। हडबडजी को चमचमी मैडम की यही बात सबसे ज्यादा पसंद थी । हडबडजी चमचमी मैडम को सबसे पहले मंच पर इसीलिए ही भाषण देने के लिए बुलाते थे कि वे मंच पर आते ही सबसे पहले हडबडजी की जय का नारा इतने जोशीले अंदाज में लगवा दे ताकि लोगों के मन में दिन भर उस नारे को तबाकू से भरे हुक्के की तरह बार-बार गुडगुडाने का मन करता रहे। चमचमी जी ने फिर बोलना शुरू किया- मेरी जिन्दगी में अंधेरा ही छाया रहता अगर मैं वंचित जागृति  संघ में ना जुड़ती। पैंतीस साल पहले जब मेरे पति गुजरे थे तब में एक तरह से अनाथ सी ही गई थी। भाई-भाभी मुझे साथ रखना चाहते थे पर मेरा मन उनके साथ रहने का नही था। पर शुक्र है हडबडजी का जिन्होंने मेरी संस्था महिला मैत्री संघ बनवाकर मेरे टूटे मन को सहारा दिया। इसलिए मैंने सोचा है कि तब तक मेरे अन्दर जान है तब तक मैं अपने 'महिला मैत्री संघ' को वंचित जागृति संघके साथ जोड़कर ही काम करूंगी ।मैं हडबडी जी के लिए अपना खून भी बहाने को तैयार हूँ। साथियों गली-गली में हमारी जाति तोड़ो वर्ग बनाओं रैली के पहुँचने पर उसका भव्य स्वागत तो हो ही, पर रैली पहुँचने से पहले रैली के राष्ट्रीय नेता हडबडजी पर पुष्प वर्षा हो व पुष्प गुच्छों से उनका जोरदार स्वागत हो, महिलाओं द्वारा उनकी देवता-स्वरुप आरतियां उतारी जाएं , इसकी पूरी जिम्मेदारी मैं खुद अपने सिर लूंगी। हॉल तालियों से गड़गडा उठा। उसकी एक महिला साथी मक्खनीबाई जो पूरे शरीर पर सोने के चमचम करते गहने और हमेशा चमचमाते कपडे पहने रहती थी उसने अपनी कांपती-सहमती मक्खन भरी आवाज़ लगाई 'हमारी नेता कैसी हो, चमचमी बहन जैसी हो। हडबडी भाई तुम संघर्ष करो, हम तुम्हारे साथ है। मंच से उतरते ही चमचमी बहन की चमचियों ने चमचमी बहन को यह कहते हुए गले लगाना शुरु कर दिया कि- क्या जबर्दस्त बोलती हो यार हम तो तुम्हारे पैर की धूल के बराबर भी नही है।

अब हडबडी जी ने अगले वक्ता के रूप में घुग्घूजी को मंच पर बुलाया । घुग्घूजी कई वर्षों से दामपंथ से प्रभावित होकर बंधुआ मजदूरों का संगठन बनाना चाह रहे है, पर बना नही पा रहे थे। उनकी बेबसी पर लोग उनको सलाह देने के साथ-साथ ताने मारते हुए कहने लगे थे कि या तो कामरेड दाम के लिए काम कर लो या फिर पंथ में जुडकर मजदूरों की यूनियन बना लो । पर उन्हे तो दोनों एकसाथ चाहिए थे। दाम भी और पंथ भी, सो बूढे होने को आ रहे है दाम तो उनको पहले भी ठीक-ठाक मिल रहा था, पर पंथ पीछे पिछडता जा रहा था। इसलिए बेचारे हमेशा मुँह लटकाए घूमते रहते थे। इसलिए उनके चेहरे पर एक परमानेंट मनहूसियत सी छाई रहती थी। लेकिन अब हडबडजी के साथ जुडकर उन्हे अपना अंधकारमय भविष्य कुछ-कुछ उज्जवल सा दिखने लगा था। सो उन्होंने अपनी जीवन भर की नन्ही सी पूँजी को अकूत दौलत में बदलने की सोची। उन्होने दो-चार साथियों के सहयोग से बनी अपनी एक छोटी सी संस्था दबी हुंकार को वंचित जागृति संघ के साथ जोड़कर उसे एक बड़ी बहुत बडी गैरसरकारी संस्था बनाने के सपने को पूरा करने की स्कीम पर काम करना शुरु कर दिया था।

घुग्घु जी ने मंच पर आकर चारों तरफ नजर दौडाई। सामने मंच पर एक बेहद कमनीय सांवली-सलोनी घुंघराले बालों वाली हसीना विराजमान थी। पता नही क्यों उस महिला को देखते ही उन्हे अपने पुराने जवानी के दिन याद आ गए, जब वह ऐसी ही एक हसीना के प्रेम में गिरफ्त थे, बस रंग का ही फर्क था। उस हसीना से उनकी दांत-काटी दोस्ती थी ,पर मन में उनके एक तरह से अपने घुग्घुपन को लेकर आत्महीनता थी इसलिए वे उस प्रेम को सार्वजनिक रुप से समाज और हसीना के सामने कभी प्रकट नही कर पाएं और अंत में गांव से ही माँ की पसंद की एक पढी-लिखी मगर घरेलू गाय जैसी कन्या को अपने पल्लू में बांध लाए। पर मन में बसी उस गौरवर्णां के अभाव में जीवन भर अपनी माँ ,पत्नी और कभी-कभी अपने-आप को कोसते रहे।

उस सांवली-सलोनी-कमनीय बाला को देखते ही घुग्घु जी के मुँह से क्रांति का झरना झरने लगा। वह अपने भाषण में लाल और नीले आन्दोलन का एक साथ घालमेल करते हुए बोले- साथियों वैसे तो आजकल कही भी पहले की तरह जाति की जकडन नही दिखाई नही देती, पर फिर भी इसे तोड़कर हमें वर्ग विहीन समाज की स्थापना करनी है। मैं हडबडजी को पिछले कई साल से जानता हूँ और कुछ समय से उनके साथ काम भी कर रहा हूँ। मैं आपके सामने कसम खाकर कहता हूँ कि मुझे जीवन में पहली बार ऐसा दरियादिल, सुलझा हुआ, समझदार इंसान मिला है। मेरे साथ आप सब लोग गवाह है कि हमारे हडबडी भाई जीवन भर समाज के काम में इस कदर डूबे रहे कि आज उनके पास संपत्ति के नाम पर अपने बच्चों को देने के लिए एक लैपटॉप तक नही है। अब आप ही बताईए जिस इंसान के पास अपना कहने को कुछ ना हो और जो फिर भी जो दूसरों के सुख के लिए रात दिन काम रहे तो भला बताईये अगर मैं ऐसे धर्मात्मा इंसान की आरती उतारता हूँ तो क्या गलत करता हूँ ? जी हाँ मैं इनका भक्त हूं और ये मेरे अन्नदाता भगवान है। घुग्घुजी के हर वाक्य पर लोग जोर-जोर से ताली बजा रहे थे। लोगों से मिलती वाह-वाही देख वे और जोश में आकर बोले- भाईयों आज मैं इस मंच से आपको विश्ववास दिलाना चाहता हूँ कि मैने ऊंची जाति में जन्म जरुर लिया है, पर मुझे आप लोगों के साथ खाने-पीने, उठने-बैठने में बिल्कुल दिक्कत नही है।

आज भी हम लोगों को अपने गांव में आपके समाज के लोगों को साथ बैठने की इजाजत नही है। मुझे हमेशा इस बात का अफसोस रहा है। मेरे पुरखे गांव में अभी भी पारम्परिक तरीके से पंडताई का काम करते है। घर का सबसे बडा पुत्र होने के कारण यह काम मुझे विरासत में मिलने वाला था। पर हडबडजी ने जब मुझसे कहा- यार कहाँ गांव में फंसे पडे हो चलो मेरे साथ, मेरी संस्था में आ जाओं और वहीं अपनी कला का सही-सही इस्तेमाल करो। मैं उनकी बात से सहमत होकर यहां आ गया और आज आपके सामने खडा हूँ। मुझे आपके समक्ष लाने में और आपके काम को आगे बढाने के मेरे योगदान में हडबडी जी की भूमिका वाकई सराहनीय है। अभी पिछले साल मैं हडबडजी की आज्ञा से दस-बारह देशों की विदेश यात्रा पर भी जा चुका हूँ। मैने वहाँ विदेशों में भी हडबडजी के जाति विहिन समाज की कल्पना के साथ अपनी वर्ग विहिन समाज वाली थ्योरी को जोड़कर देश में होने वाली अटल क्रांति के नव संभावनाशील रुप को नये फ्रेम में पेश करने का काम किया है। मैं हडबड भाई को बता देना चाहता हूँ कि मैं हमेशा आपके साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम करने को तैयार हूँ। इस रैली यात्रा के माध्यम से हमारे हडबड भाई के नाम का डंका चारों ओर मच जाए इसके लिए मैं रैली में प्रैस का मोर्चा संभाल लूंगा। ना जाने घुग्घुजी और कितनी देर हडबडी जी की आरती उतारते रहते, शायद इस आरती से बोर होकर उनके इस आरती उतारक वक्तव्य पर विराम लगाते हुए, सामने बैठी सांवली सलोनी कमनीय हसीना के साथ बैठे एक सज्जन ने अनुग्रह भरे अंदाज में कहा- घुग्घुजी कुछ क्रांतिकारी शेरों-शायरी तो सुनाईये। आपके पास तो शेरों-शायरी के अथाह भंडार है। हसीना ने भी अपनी मुग्ध मुस्कान से उस सज्जन की मांग का अनुमोदन कर दिया। अब तो घुग्घुजी का मन सबकी तरफ से हटकर उस हसीना के साथ प्रणय-क्रीडा करने को मचल उठा। उनका मन क्रांतिकारी शेरों-शायरी की जगह सामने बैठी हसीना को अपने गले से लिपटाने को उतावला हो उठा। मन ही मन वे कुछ यों गुनगुनाने के लिए बेताब हो उठे --  


हरी मखमली घास पर लेटे हुए हम-तुम,
सफेद चांदनी को पीते हुए हम-तुम,
याद आया वो पुराना जमाना- फसाना,  
तुम्हारी याद में तडप उठा मैं हमदम।
तुम्हे पाने को, तुम्हारे प्यार भरे लब चूम उठने को,
एक बार फिर दिल बच्चे की तरह मचल उठा।

पर सामने जनता बैठी थी, कहीं जनता हसीना के प्रति घुग्घुजी के मनोभाव ना ताड जाएं सो तुरंत घुग्घुजी ने हसीना के लिए अपने दिल में मचल रहे तूफान को थाम कर अपने दिल पर हाथ रखते  हुए हडबड जी को समर्पित करते हुए एक गजल सुनाई-

      तुम क्या गले मिले, हम क्या गले मिले
         सदियों के सारे पाप एक पल में धुल गए।
      मैं नाचीज तो बस हरदम, निहारता रहा कंकड भरे रास्तों को,
      तुम्हारे आने की आहट जो हुई, तो बस कंकड मोती बन गये।
      मुझे सपने में भी दिखता है, खामोश नीला आसमान लाल रंग लिये,  
      और धरती पर हजारों मुट्ठी तनी हुई, हमारे मिलकर देखे सपने जीतने के लिए।

घुग्घुजी का गाना सुन सभा में जोरदार तालियाँ गड़गड़ा उठी। मंच के नीचे बैठी चमचमी बहन ने नारा लगाया- हडबड भाई के सपने कौन पूरे करेगा- सभा में उपस्थित भीड ने जोर-जोर से छाती पर हाथ मारते हुए कहा -हडबड भाई हम करेगे हम।

घुग्घुजी के जाने के बाद हडबडजी ने 'फडफडी जी' को बुलाया। फडफडीजी अपनी नाम के अनुसार ही चारों तरफ फडफडाते हुए फिरते थे। पेशे से बैंक में मैनेजर थे। बैंक मैनेजरी के अलावा इन्हे रात-दिन साहित्य लिखने का चस्का लगा हुआ था। धीरे-धीरे यह चस्का रोग में तब्दील हो रहा था।  फडफडीजी कहीं भी जाते या बुलाएं जाते वहां वे केवल और केवल ही अपनी लिखी पुस्तकों के बारे में हमेशा सुनना और सुनाना चाहते थे। यदि कोई इनकी पुस्तकों की जरा सी भी आलोचना कर देता तो यह उसे अपने फडफडाते दिल पर लेकर उस आलोचक को अपने जीवन से हमेशा के लिए फडाफडा देते। इनके स्वभाव की एक और खासियत थी कि इन्हें छोटी-छोटी बातों पर सबके सामने फडफडाने का अचानक दौरा पड जाता था। दौरे के वक्त कभी उन्हे भयंकर गुस्सा आ जाता और कभी जोर-जोर से रोना। सुना था कि एक बार उन्होने गुस्से में भरकर सबके सामने अपने बाल इस कदर नोंच डाले कि उनके सिर पर कुल आधे बाल रह गए, जिसका परिणाम यह निकला कि वे आधे सिर से गंजे हो गए जिसकी वजह से अब उन्हे हमेशा टोपी पहननी पडती है। इसी फडफडाते स्वभाव के कारण वे कई बार वंचित जागृति संघ से अपना नाता तोड़ चुके थे। परन्तु हडबडजी इतने सरल ह्दय थे कि वे बार-बार इनके द्वारा हुए अपने अपमान को भूलकर फडफडीजी को वापिस बुला लेते थे। आज फडफडी जी बहुत मूड में थे। उन्होने मंच पर आकर कहा- हमारे हडबडी भाई गंगा की तरह निर्मल है, वह किसी के लिए भी किसी प्रकार का भेदभाव अपने मन में ही नहीं रखते। मुझे जब 'जाति तोड़ो वर्ग बनाओं' रैली से जुड़ने के लिए कहा तो में पिछले सारे फडफडाते हुए मतभेद भुलाकर सिर के बल चला आया। मैं हडबडजी को विश्वास दिलाता हूं कि जब तक मेरे अन्दर एक भी सांस फडफडा रही है तब तक मैं हडबडजी के साथ जुड़ा रहूंगा। मैं जाति तोड़ो वर्ग बनाओ रैली में अपने दोस्तों के साथ मिलकर सड़क पर फडफडाते हुए पर्चे बांटने की जिम्मेदारी लेता हूं। फडफडीजी का फडफडाता हुआ भाषण सुन पूरा हॉल तालियों की फडफडाहट से गूंज उठा।  

इसके बाद हडबडजी ने प्रेम-पैसे के अभाव में कुपोषित तीस-पैतीस साल के एक छात्रनुमा युवक चक्करुराम को मंच पर आने के लिए आंमत्रित किया। वह अपने जीवन में प्रेम व पैसे के अभाव के चलते अपने सूखे पिचके गाल लिये, कंधे पर डीजल  का बैग लापरवाही से डाले , हाथों में रोलेक्स की कीमती घडी, , शरीर पर महंगी औरेंज टीशर्ट , टीशर्ट के कॉलर पर लटकती गोल्डन टाई, टीशर्ट की जेब से झांकता ब्लैक-बैरी, पैरो में ऊंची कीमत वाले हरे रंग के रिबॉक के जूते पहने मंच पर आया। इतने सारे ब्रांड एक साथ अपने ऊपर लादने से उसकी कमर झुकी हुई कमान की तरह लग रही थी। पहली निगाह से देखने पर लगता था कि उसकी रीढ की हड्डी या तो थी नही, अगर होगी भी तो उसने काम करना बिल्कुल ही बंद कर दिया होगा। मंच पर आते ही लोगों के सामने पता नही क्यूं उसकी जुबान तालू से चिपक गई। वह अपनी चिपकी जीभ को छुडाने के लिेए मुँह में उंगली डाल कर खडा हो गया। चमचमी ने अपनी चमचियों सहित उसको प्यार से निहारा। हडबडजी ने मंच पर ही उसकी पीठ ठोंकी - ये हमारा भविष्य है। आज इसकी जुबान आपके सामने भले ही तालू से चिपक गई हो, लेकिन कल यही चिपकी जुबान मक्खन की तरह इस तरह चलेगी कि सब देखते रह जायेगे। अभी हम इसकी ट्रैनिंग कर रहे है, धीरे-धीरे यह सब सीख जायेगा। चक्करुराम ने तालू से चिपकी जुबान के बाबजूद सबके सामने आंखो ही आंखों में सामने बैठी चमचमीजी और उसकी बूढी- बुजुर्ग-खुर्राट सी दिखने वाली सहेलियों की तरफ अति मनमोहनी मुस्कान फेंककर उनके दिलों पर अपना सिक्का जमाते हुए कहा-  सर मैं आपकी रैली में अपने कॉलेज से अपनी ही तरह के गरीब-बेकार-बेरोजगार लडके- लडकियां ले आउंगा। बस सर आपसे उनका खर्चा और आशीर्वाद चाहिए। उसने जाते समय सबको दिखाते हुए हडबडजी के पैर बडी अदा से छुए और उनके पैरो की धूल अपने बालों पर बडे सलीके से लगाई। हडबडजी ने गद- गद होते हुए चक्करुराम को मंच पर ही अपने गले लगा लिया। लोगों ने फिर एक बार जोर से नारा लगाया- भविष्य के नेता हडबडी भाई तुम संघर्ष करो, हम तुम्हारे साथ है।

अगले वक्ता के रुप में गुजरात से आई मिचमिची बेन ने अपनी मिचमिची आंखो से मुसुकुराते हुए किसी मास्टरनी के अंदाज में भाषण शुरू किया-  क्यों भाईयो-बहनों हम यहां क्यों आए है? क्यूं भला कोई बताएगा मुझे? फिर, अपनी मिचमिची आंखों को और जोर से मींचते हुए लम्बी हूं-sss की आवाज़ निकालते हुए कहा- हां-ss मुझे मालूम है आप सब यहां हडबडी भाई की रैली को सफल करने आए है। तो रैली सफल होगी ना-sss? हमारे हडबडी भाई के वंचित जागृति संघका नाम रोशन होगा ना-sss? हमारा हडबडी भाईया एक दिन बडा नेता बनेगा ना? सब एक बार जोर से हां बोलकर दिखाओं। कार्यकर्ता और श्रोता दोनों मिचमिचीजी के साथ जोर जोर से हां-हां बोलने लगे और इतनी जोर-जोर से हां-हां बोलने लगे कि कईयों को तो हां बोलते-बोलते जोरदार खांसी आने लगी।पर फिर भी खांस-खांसकर हां हां कहे जा रहे थे। वे चुप रहकर हडबडजी की नजरों में अपनी वफादारी खतरे में नही डालना चाहते थे। मिचमिची बहन की खासियत थी कि वह अक्सर अपनी मिचमिची आंखों से लोगों की साईक्लोजी को बडी सुंदरता से पढ लेती थी। वे हडबड और चमचमी के साथ अनेक वर्षों से जुडी थी। वह जानती थी कि कैसे लोगों की सबसे कमजोर नस पर प्रहार किया जाएं ताकि वह उसके बस में हो सके। हडबड व चमचमी के साथ जुडने से पहले उसने उन दोनों के व्यवहार का अपनी व्यवहार जाँचने वाली लेबोट्ररी में खूब बारीकी से अध्ययन किया था। अपने अध्ययन में उसने पाया कि हडबड और चमचमी जी को अपनी तारीफ करवाने में और दूसरों की निंदा सुनने में खास आनंद आता है और ये आनंद पाने के लिए दोनों अपना सब कुछ ताक पर रखने को भी एकदम तैयार थे। सो अपने अध्ययन में सफल हो मिचमिची ने जीवन में एक नया सिद्धांत विकसित किया कि लोगों को वही कहो जो वो सुनना चाहते है, ताकि अपनी लाईफ मजे में गुजर सकें। और इस सिद्धांत को व्यावहारिक जामा पहनाने के लिए वह जोंक की तरह हडबड और मिचमिची से चिपक गई थी।

अब तक लगभग सभी वक्ता बोल चुके थे। बोलने के लिए बस एक कुटाकुट्टी मैडम रह गई थी। उनके बारे में एक बात बहुत फेमस थी कि वो अपने घर से लेकर वंचित जागृति संघ के ऑफिस तक आते-आते रोज किसी ना किसी से कुटाकुट्टी करके आती थी। उनका इस तरह हर किसी से कुट्टाकुट्टी करने का उद्देश्य था कि बे एक दिन दुनिया के सामने अपने आप को रानी कुट्टाबाई  घोषित करवा सकें। कुटाकुट्टीजी को कुटाकुट्टी की इतनी आदत पढ गई कि वे बस से लेकर सडक तक पर चल रहे अंजान-निर्दोष लोगों से भी हमेशा कुटाकुट्टी करके आने के किस्से आए दिन ऑफिस आकर सुनाने लगी। अपनी कुटाकुट्टी के सबूत के तौर पर वह कई बार बस के टूटे हैंडल अपने साथ लाकर सबके सामने पेश कर अपना रौब जमा देती थी। उनकी ऐसी कुटाकुट्टी की कहानियां सुन ऑफिस की बाकी बची शान्त-स्वभावी कन्याओं की कद्र और कम हो जाती थी। चमचमीजी ऐसी शान्त-स्वभावी कन्याओं को अक्सर ताने देते हुए कह देती- देखो कुट्टाकुट्टी ने पूरा दफ्तर टूटे हैंडलों से भर दिया है  और एक तुम लोग हो जो बस तो क्या एक रिक्शे तक का भी हैंडल नही ला सकती। ऐसे ही रोज कुटाकुट्टी की नई-नई कहानियां सुनाई जाती रहती, यदि एक दिन ऑफिस में कुटाकुट्टीजी के पडौस में रहने वाला कबाडी अचानक अपना बिल ना लेने ना धमक पडता। कबाडी महोदय से लोगों को पता चला कि कुटाकुट्टी मैडम रोज उसकी कबाडी की दुकान से नये- नये हैंडल चुपचाप उठा लाती है और कभी पैसे नही देती। इसलिए वह चोरी छिपे मैंडम का पीछा करते हुए अपने सभी हैंडलो का पैसा एक साथ लेने आ गया।  

ऑफिस में आते ही कुटाकुट्टी मैंडम चिपचिपी मैंडम बन जाती और फिर वंचित जागृति संघ की दीवारों से चिपक कर हमेशा दीवारों के कान ढूंढती फिरती । उसकी इस चिपचिपी आदत और दीवारों के कानों से अनकही व अस्पष्ट सुनी हुई बातों व खबरों को बढा-चढा कर पेश करने के कारण वंचित जागृति संघ में कई बार उलटफेर के दिन आये और काफी सारे लोगों को एक ही झटके में जोर से छिटका-छिटका कर नौकरी से दूर फेंक दिया गया। पर कुटाकुट्टी मैंडम अपनी सारी चिपचिपाहट लिए वंचित जागृति संघ से चिपकी ही रहती । खैर.. कुटाकुट्टी मैंडम को कभी कुछ बोलना नही होता था। पर हां मंच पर उनके नाम की एक बार पुकार हो जाएं, उनके लिए इतना ही काफी था। सुना था कि एक-दो बार उनके नाम को मंच पर पुकार नही मिली तो कुटाकुट्टीजी ने वहीं सभा के बीच में ही हडबडजी के खास मेहमानों के कान ढूंढने शुरु कर दिए। हडबडजी उसकी इस हरकत से बेहद घबरा उठे और अगले दिन उन्होने अपने आफिस में एक शाश्वत नियम बना दिया कि चाहे कुटाकुट्टी मैंडम मंच पर जाए या ना जाए पर उनके नाम की मंच पर एक बार पुकार जरुर मचेगी।

अभी कुटाकुट्टीजी मंच पर भाषण देने के लिए चढने जा ही रही थी कि अचानक हडबडजी का मोबाईल फोन फुनफुना उठा। फोन सुनने के बाद उन्होने सामने बैठे लोगों को सूचना जारी की कि अभी- अभी मुझे खोदो ना आयोग से फोन आया है। मुझे तुरंत वहाँ जाना पडेगा। आप लोग सभा जारी रखे। मेरे बाद चमचमीजी सभा की कर्ता-धर्ता रहेगी। यह कहते हुए हडबडजी तुरंत हॉल छोडकर चले गए। उनके बाहर निकलते ही मिटिंग में उपस्थित कुछ लोग भीड की शक्ल में उनके अनुयायियों की तरह उनके पीछे-पीछे चल पडे। कुछ और लोग जो शायद बोरियत महसूस कर रहे थे, वे भी हडबडजी के बिना बाकी मिटिंग को व्यर्थ और समाप्त समझ बाहर गप्प-शप्प करने खडे गए।

हडबडजी के सभा से प्रस्थान करते ही खास सभा तुरंत आम सभा में तब्दील हो गई। और फिर आमसभा बिल्कुल पेड से टपके आम की तरह टपक कर चमचमी जी के हाथ से निकल गई। सभा बिना किसी निर्णय के अचानक और समय से पहले ही खत्म हो गई। लोग अपने आने-जाने का किराया क्लेम करने के लिए बेचारे एकाउंटेंट यानि मिस्टर गजराज पर इस कदर टूट पडे जैसे कि गुड पर मक्खी । पैसे क्लेम करने वालों को लाईन लगाने के लिए कहा गया। लाईन में सबसे आगे लगने के लिए लोगों में धक्का-मुक्की मच गई। खैर किसी तरह लाईन लग ही गई। तभी लाईन में आगे लगे लोगों को पीछे से भीड ने ऐसा जोरदार धक्का मारा, कि उसके पास रखा पैसे का बैग धम्म से नीचे गिर पडा। बैग में रखे खुले पैसे चारों तरफ छन्न-छन्न कर इधर-उधर लुढक गए। लाईन में सबसे आगे लगे आदमी का क्लेम फार्म पर साईन करते समय हाथ हिल गया और उसके पैन की नोंक सीधे गजराज के पेट में जा लगी। अब तो गजराजजी को बहुत तेज गुस्सा आ गया। उन्होंने  अपनी एकाउंटेन्टी पॉवर दिखाते हुए लोगों को डांटकर कहा --आप सभी लोग पढ़े-लिखे है। बड़ी-बड़ी फंडिड संस्थाएं चलाते है, सिविल सोसायटी के रुप में जाने जाते है, फिर भी सीधे लाईन में लगकर अपना 'क्लेम' नहीं ले सकते? तभी चमचमीजी ने आगे बढ़कर अपनी सेवाएं देते हुए बारी-बारी सबके क्लेम- फार्म लेने शुरू किए और एकाउंटेट भी पैसा बाँटने लगा। हडबडजी मिटिंग से जा चुके है इस मौके का फायदा उठाते हुए शहर के लोकल आएं लोगों ने भी खर्चे से दुगना-तीगुना किराया लिखकर अपना क्लेम- फार्म भर दिया। खैर पैसे बांटने का काम तो जैसे-तैसे निबट गया। यात्रा क्लेम से कुछ लोग संतुष्ट होकर चमचमी जी से अपने को अगली बार फिर से बुलाने की करबद्ध प्रार्थना के साथ विदा हो गए, पर कुछ किराए-भाडे से असंतुष्ट होकर सबके सामने वंचित जागृति संघ की पोल खोलने की धमकी देकर विदा हो गए। कुछ लोगों ने सभा में फैली अव्यवस्था-अराजकता देख तैश में आकर उनके खिलाफ नारेबाजी तक कर डाली। सभा बिना किसी निर्णय के खत्म हो गई। लोग अपने-2 घर टैक्सी, स्कूटर. रेल गाड़ी, हवाईजहाज जिसको जो भाया उसमें चले गये।

अगले दिन हडबडजी जब दफ्तर पहुंचे तो उन्होंने अपने एकाउंटेंट गजराज को बुलाया।
---गजराज जी कल का डिटेल बताईये। गजराज ने कहा- सर कल तीन लाख रूपया निकाला था सब बंट गया। क्या पूरा तीन लाख बँट गया ? मानों हडबडजी की आवाज़ गले में ही अटक गई- क्या कह रहे हो गजराज? हमें लोगों की ट्रैवलिंग पर केवल पचास हजार ही खर्च करना था। तुमने तीन लाख खर्च कर दिया? इतने पैसे बाँटने में एकाउंटेंट का कोई हाथ नही था इसलिए उसने रोषभरी आवाज में जबाब दिया- सर आप तो हमेशा की तरह बिना बताएं चले गए। उधर चमचमीजी ने बाहर से आएं लोगों के अलावा अपने सभी लोगों को भी पैसा बाँटने को कहा,  जब मैने उन्हें कहा कि यात्रा क्लेम केवल बाहर से आने वालों को ही मिलेगा तो वो मुझे सबके सामने यह कहकर डांटने लगी कि मेरी हडबड भाई से बात हो चुकी है, तुम केवल अपना काम करो। मै उनकी डांट खाकर चुप हो गया और मुझे लगा कि आपने चमचमी जी से बात करके ही सबको पैसा बांटने को कहा होगा सो मैंने पूरा बांट दिया।

हडबडजी अपना सिर पकड़ कर बैठ गए। रैली का कुल खर्चा पाँच लाख रुपये था जिसमें पचास हजार ट्रेवलिंग और बाकी साढे चार लाख में लोगों का खाना-पीना रहना-ठहरना, पम्फलेट-कार्ड-कैलेंडर, टैन्ट-माईक-दरियों और समापन के दिन ट्रक के उपर मंच-कुर्सियां आदि लगाने पर खर्च होना था। अब तीन लाख तो लोगों में बँट गए बाकि बचे दो लाख में क्या होगा? रैली कैसे होगी?  दो लाख में रैली निकलना असंभव है। उन्होने परेशान होकर गजराज से कहा- अब जब तुम दोनों ने मिलकर तीन लाख रुपये लोगों में फ्री में ही बाँट दिये तो  अब कहीं से भी बाकी बचे दो लाख रुपये के बिल बनवाकर लाओ। कोई भी टू-थ्री स्टार होटल नौ-दस परसेंट का कट लेकर सौ-सवा सौ लोगों के रहने-खाने- रुकने का बिल आराम से बना देगा। जाओ और जल्दी करो। दो-तीन दिन में ही यह बिल बनवा लेना। गजराज को अभी आए दो-तीन महीने ही हुए थे, बिना खर्च किए बिल बनवाने की घटना उसके सामने पहली बार घट रही थी। हडबडजी के मुँह से यह बात सुनते ही उसको जोर का झटका लगा। उसे अब समझ में आया कि कुट्टाकुट्टी ने उसकी ज्वाईनिंग के समय ही क्यों बातों-बातों में कुटिल मुस्कान से कहा था- लगता है आप यहाँ ज्यादा दिन नहीं टिकोगे। किसी भी एकाउंटेंट के यहां ज्यादा दिन ना टिकने का कारण उसके सामने था। उसने इस घपले से अपने आप को अलग रखने के लिए निर्णय लेते हुए मन ही मन सोचा- वह चाहे यहाँ रहे या ना रहे पर वह यह काम करना उसके बस की बात नही है। उसने तुरंत और तपाक से बिल बनाने के काम को साफ इंकार करते हुए हडबडी जी से कह दिया कि वह यह सब काम करने की तनखा नही लेता है, और उससे यह काम बिल्कुल नही हो पाएंगा। वे चाहे तो उसे नौकरी से निकाल सकते है। गजराज के मना करने पर उन्होंने हर बार की तरह बाहर से एक व्यक्ति को हायर किया और उसे दस प्रतिशत कमीशन के आधार पर दो लाख रुपये के किसी भी तरह के होटल के बिल लाने का काम दे दिया।

यह सब करते-करते उन्हें चमचमी की करतूतों पर तेज गुस्सा आ रहा था। उन्होंने गुस्से में तमतमाते हुए चमचमी जी को फोन लगाया। चमचमी जी कल की मिटिंग के बारे में बात करनी है, पर यहाँ नही। आप शाम को मेरे घर आ जाएं। बैठकर आराम से बात करनी पडेगी। यह हम दोनों के लिए ही अच्छा रहेगा। शाम को चमचमी जी एकदम सही वक्त पर हडबड जी के घर पहुँच गई। हडबडजी ने चमचमीजी से तनिक आक्रोशित होकर पूछा-  तुम्हें पता है कल तुम लोगों ने कितने रुपये बाँट डाले? हद है चमचमी! इतने रुपये कैसे बँट सकते है? मैं तो लुट गया। चमचमी ने हडबड को बिना वजह सिर पीटते देख थोडा चिढकर कहा-  देखो हडबड तुम्हें मिटिंग के आखिरी महत्वपूर्ण समय में उठकर नहीं जाना चाहिए था। तुम्हे तो पता ही है कि लोग केवल और केवल तुम्हारी वजह से ही बैठते है। तुम्हारे खोदो ना- आयोग जाते ही सब लोग उठकर पैसों के लिए दौड़ पड़े। ऐसे में मैं अकेली क्या करती?, मुझे लगा कहीं लोग मिस्टर गजराज से सारे पैसे ना छीन ले, नौबत तो यहाँ तक आ गई कि यदि गजराज एक मिनट की भी पैसे बांटने में देरी करता तो हमारे प्रतिभागी उसके साथ मार-पीट शुरु कर देते। इसलिए मैंने साथ बैठकर पैसे बंटवा दिए।
--पर तुमने भी तो अपने कई लोगों को पैसे दिलवाएं जबकि वो सब यही से आएं थे- हडबड ने गुस्से में कहा।
--देखो हडबड नारे भी तो जोर-शोर से तुम्हारे लिए मैं और मेरे साथी ही लगाते है ना? मेरे साथी ही सबके सामने तुम्हारे पैर छूकर तुम्हें महान बनाते है। कहो तो आगे के लिए मना कर दूं?

चमचमी ने गुस्से में भरकर कहा। हडबडजी समझ गए कि चमचमी से किसी भी बात के तर्क में पार पाना मुश्किल है. वे देखते-देखते सबके सामने झूठ और सच का ऐसा घालमेल कर देती है कि ये समझना मुश्किल हो जाता है कि क्या सच है और क्या झूठ । इसलिए बहस से पीछा छुड़ाते हुए उन्होनें चमचमी से कहा- ठीक है, ठीक है पर रैली का भी कोई कार्यक्रम तय हुआ की नही? चमचमी ने अब स्पष्ट शब्दों में कहा कि-- नही हुआ और ऐसा केवल तुम्हारी वजह से ही हुआ। हडबडजी को लगा हर बार की तरह इस बार भी सभा की असफलता का ठीकरा उनके सिर ही फोडा जाएगा। उन्होने मन ही मन दुखी होकर सोचा पता नही क्यों बार-बार उनके साथ ही ऐसा क्यों होता है? हर बार किसी ना किसी कारण से उनके नेता बनने का सपना टूट जाता है । ओह! उनकी किस्मत ही खराब है। तभी उनको ध्यान आया कि भीम-मिशन वाले किस्मत नही मानते।

तुरंत उन्होने अपनी भाषा सुधारी और मन ही मन कहा- नही-नही मैं इसे किस्मत ना कहकर अवसर चूकना कहूँ तो ज्यादा बेहतर होगा। तो मेरे साथ ही क्यो ऐसा होता है कि मैं हमेशा नेता बनने के अवसर से चूक जाता हूँ। इस बार तो हद ही हो गई। रैली तक की सभा फेल हो गई। आह! अगर मैं जीवन में एक बार भी नेता बन जाता तो पैसा और पॉवर दोनों अपनी अंटी में एकसाथ होते, पर ऐसा हो तो नही पा रहा ना? उनके मुँह से दुख के कारण एक दर्दीली आह निकल गई। वे आत्ममंथन करने लगे। शायद मेरे भाग्य में.. भाग्य शब्द जुबान पर आते ही उन्होने क्रुद्ध होकर मन में सोचा कि ये साला भाग्य शब्द बार-बार क्यों मेरी जुबान पर...खैर छोडों आता है तो आने दो मारो गोली इसको मुझे क्या .. शायद मेरे भाग्य में नेता के अलावा कुछ और बनना लिखा हो, जिसकी तरफ मेरा अब तक ध्यान ही ना गया हो। हो सकता है कुदरत बार-बार मेरे सारे क्रार्यक्रम एक के बाद एक फेल करके मुझे कुछ और ईशारा दे रही हो और मैं मूर्ख कुछ समझ ही ना पा रहा हूँ। ऐसा विचार आते ही हडबडजी ने मन में ठान लिया कि अब  उन्हे कोई नेता-शेता नही बनना। नेता बनने का ख्याल मन से बाहर निकलते ही उन्हे बडी राहत महसूस हुई। उनको लगा जैसे आज वर्षों बाद किसी ने उनके सिर पर रखा असफलता के बोझ को एकाएक उतार दिया हो। वे अपने आप को एकदम हलके महसूस करने लगे। दिमाग से बोझ उतरते ही उनके हल्के दिमाग में फिर से नये-नये आईडिया आने लगे। दिमाग में आईडिया की जंग खाई मशीन फिर धकापेल चलने लगी। वे सोचने लगे क्यों ना अपनी संस्था के माध्यम से कुछ नया बिजनेस शुरु किया जाए? पर कौन सा? जिंदगी में पैसा बहुत ही बडी चीज है। पैसे की पॉवर को कौन नही जानता? क्यों ना खूब पैसा कमाने का तरीका ढूंढा जाएं  और आगे आने वाले अपने जीवन को सुरक्षित व साधन संपन्न करने की योजना बनाई जाए। यह ख्याल आते ही उन्होने मन में विचारा कि इसके लिए उन्हे अब अपनी संस्था में सब लोगों से अलग-अलग तरीके से बात करनी पडेगी। मन में कुछ फैसला लेकर उन्होंने चमचमी से कहा- आने वाले रविवार को कोर ग्रुप की मिटिंग रख लो। मिटिंग में गिने-चुने लोगों को ही बुलाना। अब फालतू लोगों के लिए हमारे पास बजट नहीं है।

रविवार को कोर-ग्रुप की मिटिंग आफिस में ही रखी गई। कोर-ग्रुपियां लोग भी छुट्टी के दिन आने को तैयार नही थे, सो बढिया खाने-शाने, पीने-पिलाने , टीए-शीए देने की शर्त पर उनको आने के लिए मना लिया गया। जब लोगों ने अपनी-अपनी जगह ग्रहण कर ली तो चमचमी जी ने हडबडजी का नाम सबके सामने सभा की अध्यक्षता के लिए प्रस्तुत करते हुए उन्हे अध्यक्ष घोषित करवा  दिया। हडबडजी ने सभा के आरंभ में उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए कहा- साथियों आज  इस कोर ग्रुप की सभा में आप सबका हार्दिक स्वागत है। साथियों जैसा कि आप जानते है कि आज आप सबको यहाँ एक खास मकसद से कुछ महत्वपूर्ण मुद्दों पर बात करने के लिए आमंत्रित किया गया है। साथियों अफसोस है कि हम पर्याप्त फंड ना जुटा पाने के कारण अपनी रैली-यात्रा नहीं निकाल पा रहे है। आप तो जानते है कि आजकल चारों ओर मंदी का दौर छाया हुआ है। जातीय पूर्वाग्रह से भरी हुई ये ब्राह्णणवादी फंडिग ऐजेंसियां हमारे जैसी संस्थाओं को सही मात्रा में फंड देने में कतरा रही है। जिसके कारण हमें अपना रैली वाला प्रोग्राम भी ड्राप करना पड रहा है। साथियों मेरा मानना है कि अब हमें अपना पूरा ध्यान रैली-यात्रा से हटाकर दूसरे कार्यक्रमों को बनाने में लगाना पडेगा। मेरी राय में हमें अपने पैर ताकत से जमाने के लिए कुछ आर्थिक मजबूती वाले कार्यक्रम लेने चाहिए। जिससे की हम अपने शोषित-पीडित-उत्पीडित समाज के लिए बिना किसी की दया पर निर्भर रहते हुए मरते दम तक काम कर सके। आप सब बताएं हम क्या कर सकते है?
उनकी बात से मिटिंग में चुप्पी छा गई। कही से उत्तर ना पाकर  हडबडजी घुग्घुजी की ओर मुखातिब होकर बोले-घुग्घुजी आपका इतना बडा अनुभव है,आप पिछले अनेक वर्षो से मजदूरों, किसानों की यूनियनों में काम कर रहे हैं, सैकडो धरने-प्रदर्शन आयोजित किए है आपने , अब आप ही बताईए कि हमारा संगठन और हम सब लोग अपने आप को आर्थिक रुप से कैसे मजबूत करे? आपका पुराना अनुभव हमारे लिए बहुत कीमती है

अपने को इतना महत्व मिलते देख घुग्घुजी थोडे संकुचाते हुए बोले- देखिए मुझे आपके फिल्ड का ज्यादा अनुभव तो नही है पर मैं अपने व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर कह सकता हूँ कि हमें कोई ऐसा काम या व्यवसाय अपने हाथ में लेना चाहिए जो हमारे लायक हो। जिसको करने में हमें कोई विशेष मेहनत ना करनी पडी। जिस काम को करने की हमें बचपन से आदत पडी हो
चमचमीजी ने घुग्घुजी की बात काटते हुए कहा—‘ हाँ मुझे भी ऐसा ही लगता है कि हमें युवाओं के लिए कोई ऐसी अच्छी स्कीम बनानी चाहिए जिसमें चक्करुराम जैसे युवा जुड़़कर अपनी प्रतिभा निखार सके

मिचमिची ने भी सबकी हां में हां मिलाते हुए कहा- मैं आप सबकी बात से सौ प्रतिशत सहमत हूँ। हमें अपने आस-पास की जान-पहचान की संस्थाओं में प्रार्थना करके अपने बेरोजगार यूथ को रोजगार दिलवाने की कोशिश करनी चाहिए

फडफडीजी ने अपना सुझाव देते हुए कहा-  हडबड भाई हमे अपने गरीब-शोषित-उत्पीडित यूथ को किसी ना किसी चीज़ की ट्रैनिंग जरूर देनी चाहिए ताकि वे अपने पैरों पर खड़े हो सके। आज मेरा सबसे छोटा पांचवे नंबर वाला बेटा सुधीर जिसने जीवन में कुछ नहीं सीखा, तीस साल का होने को आया लेकिन अभी तक वह मेरे सिर पर बोझ की तरफ बैठा है। अगर मुझे पहले ही अक्ल आ गई होती तो मैं उसे हाथ का कोई ऐसा काम जरुर काम सीखा देता जिससे वो कम से कम अपना जीवन तो सुख से जी पाता

घुग्घुजी ने फडफडी की बात बीच में काटते हुए अपनी बात पर जोर देकर कहा हमें ऐसे कामों के बारे में सोचना चाहिए जो हम वर्षों से करते आ रहे हो, हमें उनको करने में खास दिक्कत पेश नहीं आयेगी, क्योकि हमारे पास उन कामों को करने का जन्मजात तजुर्बा भी है। इसलिए वह काम हम आसानी से कर पाऐगें। हमारे पास यूथ की कभी नही है कमी तो बस काम की है
तभी मिचमिचीजी ने अपनी मिचमिची आंखों से प्रश्न भरी निगाहों से कहा- मेरे पास यूथ- रोजगार का एक जबर्दस्त आईडिया है। अगर हडबड भाई और चमचमी बहन आप लोग बुरा ना माने तो बताऊँ ?

हडबड और चमचमीजी ने आश्चर्य से मिचमिचीजी की तरफ देखते हुए मन ही मन ही सोचा कि ऐसे कौन से रोजगार का आईडिया है जिसे सुनकर हमें बुरा लग जाएगा। दोनों ने अपनी गर्दन हिलाकर एक साथ विनम्रता से कहा कहो ना मिचमिची जी, आप तो हमारी बहुत बडी शुभचिंतक है, क्या हमने आज तक कभी भी आपकी किसी भी बात का बुरा माना है जो आज मानेगे?’ मिचमिचीजी ने अपनी आंखो को और ज्यादा मिचमिचाकर अपनी योजना सुनाते हुए कहा मेरे बचपन की एक सहेली है चम्पाकली। दस-पद्रंह साल बाद अचानक कल वह मुझे एक मिटिंग में मिल गई। उसने बताया कि वह आजकल 'सर्वोदय उजाला क्रांति मंडल के क्लेरिकल विभाग में पी.आर.ओ. की पोस्ट पर है, पर वहाँ उसकी पोजिशन किसी डायरेक्टर से कम नही है। अपनी संस्था के बारे में बताते हुए वह कह रही थी कि -कुछ साल उनकी संस्था के पास पाँच हजार गज की जमीन का एक छोटा सा टुकडा था, लेकिन संस्था में कार्यरत हम जैसे लोगों की अथक मेहनत के कारण ही, जमीन का वह टुकडा आज एक बहुत बडी भव्य इमारत के रुप में सबके सामने खडा है। अब उस इमारत में सरकारी मान्यता प्राप्त एक आई.टी.आई. और दो-तीन हस्तशिल्प कला केंद्र चल रहे है। उस आई.टी.आई और हस्तशिल्प केन्द्रों में रोज ढेरों बच्चे पढने आते है। बच्चों की लगातार बढती संख्या के कारण उनके लिए उपलब्ध सार्वजनिक सुविधाएं गडबडाने लगी है। जैसे बिल्डिग की साफ-सफाई ठीक से नही हो पा रही है। पानी-पीने की जगह में कीचड रहने लगी है। टॉयलेट इतने गंदे रहने लगे है कि बच्चों ने उनमें जाना बंद कर दिया है। चारों तरफ लाल-लाल पान की पीक के निशान दिखने लगे है। बच्चों की छुट्टी के बाद इमारत में कूडा-कर्कट के ढेर को साफ करने में भी दिक्कत आ रही है। इन सब छोटे-छोटे कामों के लिए हमें ऐसे एक्सपर्ट लोग चाहिए जो इस पूरे काम को एकदम प्रोफेशनल तरीके से संभाल ले। मिचमिची ने अपनी बात खत्म कर सबकी तरफ देखा। सब मिचमिची की बातें बडे मनोयोग से सुन रहे थे। मिचमिची ने फिर बात को आगे बढाते हुए कहा—‘यदि आप लोगों को मंजूर हो, और आपको कोई एतराज ना हो तो मैं वहां अपने यूथ को एडजस्ट करने की बात कर सकती हूँ। घुग्घुजी को मिचमिची के यह प्रस्ताव बहुत पसंद आया। प्रस्ताव उन्हे इतना अच्छा लगा कि वह अपनी जगह पर बैठे-बैठे खुशी में इतनी जोर के उछले कि उनके बगल में रखा गिलास का पानी छलक गया और पास रखे लैपटॉप के की-बोर्ड में जाकर घुस गया। उन्होंने की-बोर्ड को रुमाल से पोछते हुए मिचमिचीजी की बातों का जोरदार समर्थन करते हुए कहा मुझे तो इस काम में कोई ऐतराज नही है।अगर हम इन कामों को करने का जिम्मेदारी नही लेगें तो कोई और ले लेगा, और फिर हमारा काम दूसरों के पाले में चला जाएगा। चमचमीजी ने घुग्घु जी की हां में हां मिलाते हुए कहा- ‘मिचमिची जी मैं आपकी बात से पूरी तरह सहमत हूँ। यह हमारा पुश्तैनी काम है, पुरखों से चला आ रहा है और हमारे समाज में हमेशा से ही होता रहा है। फिर भला इस काम को हम कैसे छोड सकते है? फिर अगर छोड भी दे तो सवाल है कि क्या हमारे छोडने से ही यह काम हमेशा के लिए बंद हो जाएगा। और कोई दूसरा इस काम को नही करेगा? और फिर जब यह काम किसी ना किसी को करना ही है तो घुग्घुजी क्यों ना हम ही इस काम की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ले? यहां सबसे महत्वपूर्ण बात तो यह है कि हमारे काम का ठेका दूसरी जाति और वर्ग के लोग क्यों ले जाएं? इस काम में प्रोफेशनली एक्सपर्ट तो हम ही है। काम हमारा तो ठेका भी हमारा। फिर बात यहां साफ-सफाई की नहीं, बात हमारे हक की है। हम किसी और को इतनी आसानी से अपने पेट पर लात नही मारने देंगे। चमचमीजी की बातों से हडबडजी को बहुत दुस्साहासिक नैतिक बल मिला।

उन्होने उत्साह से भरकर कहा- सबसे पहली बात तो काम हाथ में आने की है, काम कैसा है यह बाद में सोचा जा सकता है। मिचमिचीजी अगर हमें यह काम मिल गया तो हम दुनिया को बता देगें कि गरीब-दलित-शोषित-पीडित भी अब उधोगपति-ठेकेदार और उद्यमी बनने की ताकत रखते है। एक सर्वोदय उजाला क्रांति मंडल जैसी संस्था के साफ-सफाई, रख-रखाव की तो बात ही क्या, हम तो इसके जैसी हजारों संस्थाओं की सफाई और रखरखाव कर लेगें। हमें बस आगे आने के लिए एक बार मौका तो मिले । तभी चमचमी ने उत्साह के अतिरेक में भरकर कहा- अगर यह साफ-सफाई का ठेका हमारे पास आ गया तो हमारा चक्करुराम उसे बहुत अच्छी तरह से संभाल सकता है। उसके पास हर तरह के काम व हर उम्र के लोगों को संभालने का बहुत सधा हुआ अनुभव है। पास की बस्ती में उसका उठना-बैठना रहता ही है, जरुरत पडने के समय वह किसी भी समय उस समाज के सबसे होशियार,चुस्त, मेहनती युवाओं को लाकर इस काम को बखूबी अंजाम दे सकता है। फिर मैडम चमचमी ने मिचमिचीजी की ओर प्यार भरी मुस्कुराहट फेंकते हुए पुरानी बातें याद करते हुए कहा- याद है मिचमिची कुछ साल पहले हम सब मिलकर एक गाना गाते थे- कर दें कर दें जुल्मों का सफाया, सफाई में हम माहिर है। पर आज तुम्हारे ऑफर के बाद मेरा मन उस गाने को इस तरह से गाने का कर रहा है- कर दे कर दे, कूडे-कर्कट-शौच-मल का सफाया, सफाई में हम माहिर हैं। हडबड ने चमचमी को विषय से भटकते देख वापिस उनको पटरी पर लाते हुए अधीरता से पूछा- तो मिचमिची जी आप कब करेंगी चम्पाकलीजी से हमें यह ठेका दिलाने की बात ? हडबड की अधीरता का मजा लेते हुए मिचमिचीजी ने मुस्कुराते हुए आश्वासन दिया वे जल्दी ही सर्वोदय उजाला क्रांति मंडल में बात करके हडबडजी और चमचमीजी को बताऐगी। मिचमिची जी ने कहा कि मुझे विश्वास है कि हमें सर्वोदय उजाला क्रांति मंडल में संस्था- कीपिंग का ठेका आराम से मिल जायेगा।, मेरी सहेली चम्पाकली के लिए यह कोई बडा काम नही है

सभा का पहला सत्र हंसी-खुशी में बीत गया। लंच टाईम हो गया, सो बाहर से मंगवाये गये महंगे लजीज चाईनीज और मुगलई भोजन पर लोग टूट पडे। भोजन खत्म होते ही सभा का दूसरा सत्र आरंभ हुआ। सत्र के शुरुआत में घुग्घुजी ने हडबडजी को कहा कि इस सफाई- ठेके में काम करने वाले लोगों को हम किस नाम से पुकारेगे, मेरा मतलब उनको क्या नाम दिया जाएं, इस पर हमें आज ही बात कर लेनी चाहिए ।

चमचमी जी कह रही थी कि इस सफाई-ठेके में काम करने वाले युवाओं को ऐसा नाम दिया जाएं जिसे सुनकर वे अपने ऊपर गर्व महसूस करे। मैंने बहुत सारे नाम सोचे है जैसे  सफाई-सेवक, सफाई-नायक, सफाईकर्मी, सफाई-दूत, सफाई-स्वेच्छक, या फिर सफाई-स्वयंसेवक। आप सब लोग सोचे कि कौन सा नाम सबसे ज्यादा अच्छा रहेगा। घुग्घुजी को सफाईकर्मी नाम सबसे ज्यादा पसंद आया। उन्होने सफाईकर्मी नाम के समर्थन में तर्क देते हुए कहा- सफाई के साथ कर्मी जुड़ा है यानि 'सफाई मजदूर' साथियों मुझे लगता है हम संस्था-कीपिंग के ठेके में लगे अपने युवा साथियों को सफाईकर्मी के नाम से पुकारे तो अच्छा रहेगा, क्योंकि आगे हम सब यानि आने वाले भविष्य में इन सफाई-कर्मियों को एक मजदूर होने के नाते उसको मिलने वाले लाभों और हकों को लेकर लड पाएंगे। आप सभी मजदूर-किसानों के प्रति मेरे कमिटमेंट और कंसर्न को तो जानते ही है, इसलिए मौका पडने पर मेरी संस्था दबी हुंकार भी सफाई-मजदूरों की मदद करने में तनिक भी पीछे नही हटेगी। सबको घुग्घुजी का तर्क बेहद पसंद आया। चमचमी जी ने तो मन ही मन ठेका मिलने से पहले ही उन सफाई-मजदूरों की ट्रेड-यूनियन बनाने के सपने भी लेने शुरु कर दिये।
  
आखिरकार मिचमिचीजी की चम्पाकली से जानपहचान और उसकी कृपा की वजह से वंचित जागृति संघ को सर्वोदय उजाला क्रांति मंडल में संस्था कीपिंग का काम मिल ही गया। छात्रनुमा दिखने वाले चक्करुराम जी को संस्था कीपिंग का-ठेकेदार बना दिया गया। उसने अपने समुदाय के ही दस-बारह साथियों के साथ सर्वोदय उजाला क्रांति मंडल में संस्था-कीपिंग का काम संभाल लिया।

आज वंचित जागृति संघ में संस्था हाऊस कीपिंग ठेका मिलने और उसके सफल होने की खुशी में जोर-शोर से संस्था हाउस-कीपिंग ठेका सेलिब्रेशन की तैयारियां की जा रही है। वंचित जागृति संघ परिवार से जुडे सभी लोग आज सेलिब्रेशन के लिए सपरिवार आंमत्रित है। सर्वोदय उजाला क्रांति मंडल में हाऊस कीपिंग ठेकेदार चक्करुराम और उसकी पूरी टीम दो-तीन घंटे पहले ही पंडाल में पधार चुकी है। आज चक्करुराम और उसके साथियों का सम्मान-समारोह है। पिछले चालीस सालों में जितने भी लोग वंचित जागृति संघ से जुडे या टूटे, आज उन सभी को विशेष रुप से बुलाया गया है। सफाई-नायक बना चक्करुराम चारों तरफ तितली की तरह मंडराता हुआ घूम रहा है, मंडराते-मंडराते वह वह खाने बनाने वाली जगह पर भी घूम आया। संयोगवश उसे वहां अपने बचपन का दोस्त गोलू नजर आया। उसने उसी चहक भरी आवाज में कहा- और गोलू दोस्त क्या हाल है? गोलू ने आश्चर्य से पूछा- यार चक्करु तू यहाँ? क्या चक्कर है? अब तूने यहां कौन सा नया चक्कर चलाया है? चक्करुराम ने हंसते हुए गर्व से अपने कालर ऊपर करते हुए कहा- यार चक्कर-वक्कर कुछ नही है, बस आज तेरे यार के लिए पार्टी रखी गई है। गोलू ने हँसते हुए कहा- अच्छा! तो यह पार्टी तेरे लिए है, तो सुन यार हम भी आज दोस्ती निभाने में पीछे नही रहेगे। आज ऐसा बढिया खाना बनाऐगे कि लोग अपनी उंगलियां तक चबा डालेंगे। गोलू की बातों से प्रसन्न होकर चक्करुराम बोला- चल यार गोलू चलता हूँ, फिर कभी बात करुंगा। यह कहकर वह वापिस आकर अपने दोस्तों के साथ बैठ गया।

सेलिब्रेशन स्थल पर बहुत सुंदर और मंहगे टैंट-तम्बू लगे थे।उन टैंट-तम्बुओं को तरह-तरह की झालर-मालर और जगमग करती लाईटों से सजाया गया था। सेलिब्रेशन स्थल के मुख्यद्वार पर फूलों से सजावट की गई थी। मेहमानों के लिए विशेष रुप से कांटिनेंटल, चाईनीज, मांसाहारी व अन्य प्रकार के उम्दा भोजन की व्यवस्था की गई है। पीने-पिलाने का इंतजाम एक कोने में किया गया था। बाहर से आने वाले खास मेहमानों के लिए एक जानी-मानी विदेशी फ्रोजन चिकन कंपनी डे-डिलाईट फ्रोजन चिकन से कई किलो बढिया चिकन मंगवाया गया है। पार्टी के लिए खाना लगभग तैयार हो चुका है, पर अभी तक कच्चे चिकन की डिलीवरी नही हुई है। टेंशन में आया हलवाईयों का इंचार्ज बार- बार पास आकर हडबडजी का सिर खाने लगा। वह बार-बार एक ही बात दुहरा रहा था कि साहब लगभग पूरा खाना तैयार हो चुका है बस आपका मुर्गा बनना ही रह गया है। साहब जल्दी मुर्गा मंगवाओं, बहुत देर हो रही है। अगर अब भी हमने चूल्हे पर तुरंत मुर्गा नही चढाया तो फिर खाने तक की हमारी कोई गारंटी नही है। हडबडजी सोचने लगे कि अगर पार्टी में मुर्गा ना रखा गया तो पूरा सेलिब्रेशन फीका और बेस्वाद रह जाएगा। लोगों के उलहाने-ताने अलग से सुनने को मिलेगे।

हडबड जी बार-बार कंपनी वालो को फोन मिलाने लगे। जैसे ही कंपनी में फोन मिल जाता वे उन्हे जोर-जोर से डांटने लगतेआपको मुर्गे की डिलिवरी बहुत पहले कर देनी चाहिए थी। पार्टी में अब दो-तीन घंटे ही बचे है। आप तुरंत हमारा ऑर्डर कैंसिल करिए, हमें नही लेना आपका चिकन। आपका तो वही हाल है ऊंचा मॉल खाली दुकान ।जबाब में उधर से शायद उस कंपनी के बॉस की या फिर किसी वर्कर की गिडगिडाती सी मान-मनौव्वल करती हुई आवाज आने लगती-- सर, प्लीज अभी पांच मिनट में हमारा डिलिवरी बाय आपके पास पहुचंता ही होगा। सर आज बाहर से आने वाली फ्लाईट थोडी सी लेट हो गई थी, इसी वजह से आपकी भी डिलीवरी लेट हो गई। सर प्लीज धैर्य रखिए। उधर चिकन को लेट होते देख गोलू दूसरे हलवाईयों से हंसी-मजाक करते हुए व्यंग्य में कहने लगा -लगता है यारों आज की खास पार्टी के लिए मुर्गों को भी अपना मुर्गा बनना पसंद नही आ रहा है, इसलिए वे आज मेहमानों को परोसे जाने की बजाय खुद पैदल चलकर मेहमानों की तरह पार्टी में दावत उडाने आ रहे है। खैर....शुक्र था कि अभी-अभी डिलीवरी बाय आकर चिकन की डिलीवरी दे गया। हलवाईराज ने तुरंत हडबडजी को चिकन आने की खुशखबरी कह सुनाई। चिकन को लेकर मजाक करने वाले गोलू ने झटपट अखबार में लपेटकर रखे कटे गोश्त को खोलने के लिए अखबार हटाना शुरु किया। चिकन पर लिपटा अखबार खोलते-खोलते अचानक उसकी निगाह एक खबर पर अटक कर रह गई। अखबार में छपी घटना दो-तीन पहले की रही होगी। यह अखबार के नयेपन को देख कर लग रहा था। वह अटक-अटक कर उस खबर को सबको सुनाने के लिए थोडे उंचे स्वर में पढने लगा- सीवर की सफाई के लिए गटर में घुसे दो सफाई कर्मियों की मौत। दो सफाई कर्मियों में से एक परवीन आयु बाईस साल जिसकी शादी हुए अभी एक महीना भी नही बीता था। दूसरा सफाईकर्मी सोलह वर्षीय रमेश नाबालिग था और वह एक सरकारी विद्यालय में बारहवीं कक्षा का छात्र था।खबर में रमेश की मां और परवीन की नवविवाहिता पत्नी का रोते हुए फोटो छपा था। खबर में ही कक्षा दसवीं में पढ रही रमेश की बहन सुधा का बयान भी छपा था। सुधा का कहना था कि सुबह सोनू उर्फ ठेकेदार सोहनलाल परवीन को गटर की सफाई करवाने के लिए ले जाने आया था।

परवीन चाचा की रात में हल्का बुखार था, इसलिए वो कहीं जाना नही चाहते थे। इसलिए उन्होने ठेकेदार के साथ जाने से मना कर दिया। परवीन चाचा के मना करने पर ठेकेदार सोनू ने उनको धमकी देते हुए कहा था कि यदि वह आज उसके साथ नही गया तो वह उसे भविष्य में कभी कोई काम नही देगा। इसलिए परवीन चाचा बुखार में उसके साथ जाने के लिये तैयार हो गये। वह अपने साथ रमेश भैया को भी ले गए। रमेश भैया बारहवीं में पढ रहे थे। भैया पढ-लिखकर एक बडा अफसर बनना चाहते थे। उन्हें इस तरह की साफ- सफाई के गंदे काम से बहुत घिन आती थी। पर परवीन चाचा के बार-बार जिद करने पर भैया उनके साथ इसी शर्त पर चले गए कि वहां उसे कोई गटर में घुसने के लिए नही कहेगा। जिस जगह चाचा और भैया गटर की सफाई करने गए थे, उस जगह पर कई महीनों से गटर की सफाई नही हुई थी जिसके कारण सड़क पर गंदी दुर्गंध के साथ बदबूदार पानी भी रिस रहा था। किसी ने ठेकेदार की शिकायत अपने पहचान के नेता से कर दी थी, इसलिए ठेकेदार ने अपनी जान बचाने के लिए परवीन चाचा को बिना कुछ साधन पकडाए जहरीली गैस से भरे गटर में जबर्दस्ती घुसा दिया। जब परवीन चाचा को गटर में घुसे आधा घंटे से भी ज्यादा समय हो गया और वह सांस लेने के लिए एक बार भी ऊपर नही आएं तो यह देख ठेकेदार ने मेरे भैया रमेश को भी जबर्दस्ती गटर में चाचा को देखने भेज दिया। 


भैया कभी गटर में नही घुसे थे। उन्हे तो सडक पर फैली कीचड से भी घिन आती थी। भैया के लाख मना करने पर भी ठेकेदार ने उन्हे जबर्दस्ती गटर में घुसा दिया। गटर में घुसने के बाद भैया भी बाहर नही आए। कुछ देर बाद लोगों ने दोनों की लाश को एक साथ बाहर निकाला। सुधा रोते रोते बता रही थी कि मेरे भईया लाखों में एक थे। पढाई में सबसे आगे रहते थे। हमेशा क्लास के मानिटर बनते थे। सारे टीचर भैया की तारीफ करते नही थकते थे।

सुधा का ह्रदय-विदारक, दिल-तोडक बयान पढते-पढते गोलू की आंखों से आंसू की दो बूंद चू पडी। अखबार में छपी इस मार्मिक खबर ने उसे अंदर तक विचलित कर दिया। वह आगे पढने लगा। खबर के दूसरे अंश में प्रसिद्ध पत्रकार जाहीद खान की सफाई कर्मियों की दुर्दशा और उनकी गटर में होने वाली मौतों पर विशेष टिप्पणी छपी थी जिसमें उनका कहना था कि सीवर की सफाई के लिए सफाईकर्मियों के पास कायदे से गैस डिटेक्टर, ऑक्सीजन मास्क, फुलबॉडी सूट, गमबूट, दास्तानें, हेल्मेट और सैफ्टी बैल्ट जैसी जरूरी चीजें होनी चाहिए लेकिन कहीं भी उन्हें यह बुनियादी सहूलियतें नहीं मिलती. आज भी वे बांस की खपच्ची, रस्सी में बंधी एक बाल्टी, फावड़ा, लोहे का कांटा व रॉड से अपना काम चला रहे हैं. सफाईकर्मी बुनियादी सहुलियतों से महरूम हैं और कामगार अमानवीय और जोखिमपूर्ण परिस्थितियों में अपना काम करते हैं। सीवर में उतरने वाले लोग रोबोट नहीं हैं, बल्कि इंसान हैं. यह कदापि ना भूला जाएं कि सीवर में काम करने वाले भी हमारी तरह हाड़-मांस के इंसान हैं और वे हमारे मल-मूत्र को साफ करने के लिए अपनी जान जोखिम में डालते हैं.

जाहिद अपनी टिप्पणी के माध्यम से इस सभ्य समाज के सामने सफाई कर्मी वर्ग की दुर्दशा की कडवी सच्चाई लाना चाहते थे। पर इस कडवी सच्चाई को गोलू का समाज जी रहा था इसलिए उसके लिए यह कोई नई बात नही थी। वह बचपन से ही देख रहा था कि उसके अपने परिवार की चाची-ताई-बुआ और खुद उसकी अपनी माँ भी असमय ही अपने जीवन साथी खो कर बदहाल हालत में जीवन जीने को मजबूर है। उनके जीवन साथी इन गटरों को साफ करते-करते उन्हें दुनिया भर की मुसीबतें झेलने के लिए इस संसार में अकेला छोडकर, इस सत्यानाशी गटरों में हमेशा के लिए समा गए। ये गटर उनके लिए ऐसे मौत के कुएं बने हुए है जिनमें एक बार घुसने के बाद कोई सकुशल वापिस नही लौटता।

मां ने गोलू को बताया था कि जब गोलू के पिता की गटर में मौत हुई तब वह माँ के पेट में ही था। जीवन भर बाप के प्यार को तरसता वह बिन बाप का बच्चा गोलू । माँ ने गोलू को गली-मोहल्लों में झाडू लगा कर बडी मेहनत-मशक्कत से पाला-पोसा। यह उसकी अनपढ-अकेली-बहादुर माँ की ही मेहनत थी कि उसने भूखे-पेट रहकर, हर मुसीबत अकेले झेलते हुए भी गोलू को कभी झाडू  नही पकडने दी। ना केवल झाडू पकडने दी बल्कि उसके दिल-दिमाग- मन में झाडू के लिए हमेशा के लिए नफरत पैदा कर दी थी। इसलिए गोलू में वह आदर्श पनप चुका था कि वह किसी तरह का काम ना मिलने की स्थिति में भूखे मर जायेगा पर किसी दूसरे की गंदगी साफ करने के लिए कभी झाडू नही उठायेगा। लेकिन आज परवीन और रमेश की मौत ने उसको अंदर तक झकझोर कर रख दिया। उसका विचार किसी बरसाती नदी की तरह आगे बढने के लिए जोर मारने लगा। वह पूरी स्थिति पर मंथन करते हुए सोचने लगा - मेरे अकेले झाडू ना उठाने से क्या होगा? उसकी बिरादरी के अधिकांश भाई-बंधु तो अभी तक इसी तरह नरक की जिंदगी जी रहे है, और ना जाने रोज कितने इन बदबू से बजबजाते गटरों में मर-खप जाते हैं। क्यों नहीं हम इस गंदे घृणित काम को छोड कोई दूसरा पेशा अपना लेते। चाहे कोई हमें लाख रुपये दे तो भी हमें यह गंदगी उठाने का काम नही करना चाहिए। मेरी निगाह में इस गलीज काम से निजात पाने का एक ही तरीका है कि इसे इतनी जोर से लात मारों कि वह उल्टे मुँह के बल जा गिरे और फिर कभी हमारी जिंदगी में आने की हिमाकत ना करे।


हम खूब पढे-लिखे। डॉक्टर, इंजीनियर, वकील, प्रोफेसर बने। यदि किसी कारणवश पढ-लिख ना पाए तो कोई ऐसा पेशा चुने जिसमें हमें इज्जत मिले, आदर-सम्मान मिले। हमारे लिए इलैक्ट्रिशियन, टैक्नीशियन, ब्यूटिशियन, पलम्बर, दर्जीं, आदि ना जाने कितने काम है जो हम कर सकते है। मेरा बस चले तो मैं इस साफ-सफाई जैसे काम और धंधे-ठेके को झाडू मारकर हमेशा के लिए उसी गंदे गटर में दफन दूं जिसमें हमारे हजारों लोग हर साल दफन हो जाते है। सोचते-सोचते अचानक उसे ख्याल आया कि यहां भी तो उसी साफ-सफाई के ठेके का सेलिब्रेशन चल रहा है। चक्करु पढ-लिख कर भी अपने लोगों से यही काम करवा रहा है। गोलू का मन गुस्से से भर उठा। उसी गुस्से में वह बोला- लानत है उसपर और उसके इस काम को सेलिब्रेशन करने-करवाने वालों लोगों पर। क्यों बनाए वह ऐसे गंदे गटर जैसी मानसिकता के गलीज लोगों के लिए खाना? गोलू तुरंत कटे मुर्गे को एक तरफ रख, मन में एक मजबूत निर्णय लेकर उठ खडा हुआ। उसने तय किया कि वह इस सफाई ठेके की सेलिब्रेशन पार्टी के लिए खाना बनाने में और मदद नहीं करेगा।

उधर हडबडजी को बधाई देने वालों का तांता लगा हुआ है। इधर चमचमीजी सादी कीमती साडी पहने पार्टी का सेंटर-पाईंट बनी हडबडजी को मिलने वाले फूलों की मालाएं, बुके ,उपहार और बधाई-संदेश संभालने में लगी हुई थी। मंच के बीचोंबीच खडे हडबड जी लोगों को बडे-बडे सपने दिखाते हुए जोर-जोर से माईक पर चिल्लाकर-चिल्लाकर कह रहे थे - अभी तो ये अंगडाई है, आगे और ऐसे ठेके छीनने की लडाई है। अजी साहब बस अब आप आगे- आगे देखते जाईए हम क्या- क्या नही करते? आप सब हमारे बढते दबंग कामों से दंग रह जाएगे। घुग्घुजी नशे में गदगद होकर हडबडजी से गले मिलते हुए कह रहे थे- आज तुमने वाकई भीम मिशन का सपना सच में पूरा कर दिखाया। तुम्हारे भीम बाबा ऊपर आसमान से तुम्हारी प्रगति देखकर तुम्हें आशीर्वाद दे रहे होंगे। भविष्य में चक्करुराम जैसे युवाओं की कृपा से हमारा दमित समाज तमाम तरह के सर्वोदयों उजाला क्रांति मंडलों और संस्थानों में पैर जमा लेगे। क्यों हडबड भाई मैं ठीक कह रहा हूँ ना ? हडबडजी ने इठलाते हुए घुग्घुजी के स्वर में स्वर मिलाते हुए कहा ' हां घुग्घु मेरे प्यारे दोस्त, यह हमारी आज तक की सबसे बड़ी सफल कहानी है, इसपर हम जल्दी ही वंचित जागृति संघ की तरफ से एक बढिया रिपोर्ट छापेगे जिसे लिखने का काम तुम्हारे जिम्मे होगा।हम उसका शीर्षक रखेंगे- पुश्तैनी धंधो की ओर वापिस लौटते हमारे सफाईकर्मी- वंचित जागृति संघ का एक सफल उद्यम फिर चमचमी की तरफ देखते हुए कहा- क्यों चमचमी ठीक कह रहा हूँ ना? चमचमी हडबड की हाँ में हाँ मिला पाती  इससे पहले ही जगमग करते रोशनी भरे टैंट के एक कोने में से अचानक किसी के जोर से कराहने की आवाज़ आई। हडबडजी और चमचमीजी ने घूम कर देखा कि भीम-मिशन की एक टांग घायल हो गई थी और वह उसी घायल टांग से लड़खड़ाता हुआ उदास मन से उनसे दूर चला जा रहा था। दोनों ने उसे एक बार गौर से देखकर पहचानने की कोशिश की, फिर अंजान बन अपनी निगाहें फेर ली और वापिस संस्था कीपिग ठेका सेलिब्रेशन में मस्त हो गये।

कहानी खत्म हुई। मिट्ठू में राहत की लंबी सांस लेते हुए पूछा- क्यों मिट्ठी कैसी लगी मेरी कहानी? मिट्ठी मिट्ठू की कहानी में इतनी खो गई थी कि कुछ देर उसके मुँह से कुछ शब्द नही निकले। अपने को वर्तमान में खीचकर मिट्ठी ने उसे जबाब देते हुए कहा-मिट्ठू तेरी कहानी तो बडी लाजवाब निकली। पूरी कहानी सुनने के बाद मेरे मन में एक सवाल कौंध रहा है। तेरी कहानी सुनकर अगर हडबड, मिचमिची, घुग्घु, चमचमी. कुटाकुट्टी  और फडफडी ने मानहानि ठोक दी तो तू क्या करेगा? मिट्ठू ने प्यार से मिट्ठी को जबाब देते हुए कहा- अरे मेरी भोली मिट्ठी तू भी कितनी नादान है। आ तुझे बताऊँ कि यह तो है सिर्फ कहानी, कहानी से नही होती किसी की मानहानि। फिर भी मिट्ठू इंडियन सीरियलों और फिल्मों की तरह तू भी अपनी कहानी के अन्त में एक वाक्य जरुर लिख दे कि इस कहानी की सभी घटनाएं, नाम, स्थान व पात्र एकदम काल्पनिक है। घटनाएं और पात्र संयोगवश मिलने पर लेखक इसके लिए बिल्कुल जिम्मेदार नहीं होगा.मिट्ठी ने ठुनकते हुए कहा।

ठीक है मेरी मिट्ठी अगर तू ऐसा कहती है तो ऐसा ही होगा। तो... मेरी मिटठी के अलावा सभी कहानी सुनने-पढने वाले श्रोताओं- पाठकों मैं कहानीकार मिट्ठू अपनी कहानी पथभ्रष्ठ के लिए घोषणा करता हूँ कि इसके सभी  नाम, पात्र, स्थान और घटनाएं पूर्ण रुप से काल्पनिक है। इस कहानी का किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति व संस्था से कोई लेना देना नहीं है। नाम, पात्र, स्थान, घटनाओं का किसी से मिलता-जुलता होना मात्र संयोग ही माना जायेगा। इसमें लेखक की कोई जिम्मेदारी नही होगी।

  • अनिता भारती

मैं बस अड्डें से मुद्रिका मे शालीमार बाग जाने के लिए चढ़ी। एक तो गर्मी, ऊपर से बस खचाखच यात्रियों से भरी हुई। पूरी बस में हाय-तौबा सी मची हुई थी। अगला बस स्टॉप आते ही, बस मे एक औरत चढ़ी। उसे औरत कहूं या लड़की, उसे लड़की ही कहूँगी। 15-16 साल की रही होगी। रक्तहीन पीला चेहरा, बाल बिखरे हुए, गोद में मैले तौलिये में लिपटा कमजोर सा बहुत ही नन्हा सा बच्चा क्या पता शायद नवजात ही हो। लड़की बस में कभी अपने को संभालती, तो कभी बच्चा, कभी अपनी साड़ी। उसका कद इतना ऊँचा भी नही था कि वह बस का डंड़ा पकड़ सके, फिलहाल तो उसके दोनों हाथ बच्चा पकड़े होने के कारण व्यस्त थे। जब भी ड्राईवर ब्रैक लगाता, वह लड़की कभी इधर सवारियों पर गिरती, कभी उधर। अपने आप को संम्भालते-संभालते उसके मुँह से ना जाने क्यों कराह सी निकल जाती।

एक तो बिखरे हुए बाल, मैले अस्त-व्यस्त कपड़े फिर गरीब और ऊपर से गोद में नन्हा बच्चा। बस के लोग उसे घूर-घूर कर देखने लगे, उनकी निगाहों से लग रहा था मानों उन्हे इस बात पर क्रोध हो कि यह बस में क्यों चढ़ी? क्या बस इन जैसे गन्दे घिनौने लोगों के लिए बनी है? तभी ड्राईवर ने जोर से ब्रैक लगया। लड़की दर्द से चिहुँक उठी, शायद पास खड़े आदमी ने उसका पैर दबा दिया। लड़की कातर स्वर में, उस अधेड़ से दिखने वाले आदमी से बोली ‘अंकल जरा पैर हटा लो, मेरा पैर दब रहा है।अंकल संबोधन सुन उस आदमी की त्यौरियों चढ़ गई, वह गुर्राकर बोला देखती नहीं बस में कितनी भीड़ है। क्या मैं जानबूझकर तेरे पर पैर रखकर खड़ा हूँ।खुदको बस में खडे होने की तमीज नहीं, कभी इधर गिरती है कभी उधर। आदमी की बात लड़की का मुँह लटक गया। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह बस में बच्चा संभाले या कपड़े ऊपर से बगलवाले महाश्य जी ओर सटे जा रहे थे,

महिला सीट पर बैठी महिलाएँ सिर झुकाऐ बैठी थी या फिर खिड़की से बाहर झांक रही थी। भरी बस में किसी को सीट देने का मतलब है खुद भारी असुविधा में खडे होकर घर जाना। ऐसी असुविधा कौन मौल ले? तभी लड़की से थोड़ी दूर खड़े साधारण से दिखने वाले आदमी ने चुटकी ली अजी ऐसा ही भोला मुंह बनाकर जेब काटती है, देखा नहीं गोद में बच्चा भी है। इनके गिरोह है गिरोह, इनसे पंगे मत लेना,चाकू सटा देती है बगल में और जेब कब कटी पता भी नहीं चलेगा। उस की यूँ हंसी उड़ते देख मेरा दम सा घुटने लगा। मुझे लगा इनकी नज़र में हर वो औरत जेब कतरी है जो गरीब है, बेबस है। मैने उस झूठी बात घड़ने वाले को घूरकर देखा और बदत्तमीजी से बोली तेरी जेब कट गई क्या? क्या सबूत है तेरे पास कि ये जेब काटने बाली है, बोल ? शायद उस आदमी को यह उम्मीद नहीं थी कि उसकी बात इस बुरी तरीके से काटी जायेगी, उसे लगा होगा कि सब हाँ में हाँ मिलायेगे। तभी वह अधेड़ सा आदमी लगभग घूरते हुए सा उस लड़की को देखकर मुझसे बोला आप तो अच्छे घर की लगती, आपको इनका क्या पता? अजी ये दिन में बच्चा गोद में लेकर जेब काटतीं है और शाम को इसी बच्चे को सड़क पर फेंककर सज- धज कर खड़ी हो जायेंगी। उस आदमी की बात सुन मेरे साथ-साथ बस में बैठी एक वृद्धा को भी गुस्सा आ गया। वह आदमी को ड़ांटते हुए बोली बेटे ऊँचे बोल मत बोल, तु भी बाल- बच्चे वाला होगा, ये तेरी लड़की के बराबर ही होगी। फिर वह बडी़ मुश्किल से सीट पर एक तरफ खिसकते हुए लड़की से अपनत्व भरे स्वर में बोली बेटी इतने छोटे बच्चे को लेकर घर में बैठ, देख तेरे साथ साथ यह भी बस मे घक्के खा रहा है। वृद्धा की अपनत्व भरी बात सुन लड़की की आँखे छलछला आई। लड़की रूँआसे स्वर में बच्चे की ओर इशारा करते हुए बोली ये अभी पाँच दिन का है, मेरी आज ही अस्पताल से छुट्टी हुई है। इसके पापा को हमें लेने आना था। मैं सुबह से अस्पताल के ग्रांऊड में इंदजार करती रही। मुझे लगा कि अब वे नहीं आऐगे, और अभी मुझसे ठीक से बैठा नहीं जा रहा है, तो में अपने आप हिम्मत जुटा कर घर जा रही हूँ। लड़की हाथ में दबे एक मैले कुचेले पन्नी के लिफाफे में से कुछ कागज निकाल कर दिखाती हुई बोली देखो ये मेरी छुट्टी के कागज है और ये इसका जन्म कार्ड।

वृद्धा के मुंह से अकस्मात शब्द निकले अरी तू तो जच्चा है। जंचकी मे तो गाय- भैंस कुत्ते- बिल्ली तक को लोग सम्मान और दुलार देते है, और फिर तु तो मानुष जात है। और तेरी ये गत, वृध्दा की आँखे नम हो गई। अब रमा से और सहना मुश्किल हो गया था, वह सीट पर जान बूझ कर आंख बंद किए बैठे आदमी से गुस्से में बोली-कब तक जानबूझकर आँखे बंद किए बैठा रहेगा ,उठ देख इसके लिए खड़ा रहना भी कितना मुश्किल है। यह महिला सीट है कम से कम यह जगह तो हमारी है। रमा की कड़क आवाज सुन सोता हुआ आदमी एकदम घबरा कर उठ गया। उसकी इस हरकत पर रमा और वृध्दा दोनों मुस्कुरा उठी।


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